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ख्रीष्ट का लहू हमें कलीसिया में एक-दूसरे के समीप लाता है। 

हम ऐसे संसार में रहते हैं जहाँ पर अपना परिवार, अपना समुदाय, अपना समाज, अपनी जाति, अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा, अपना खान-पान, अपनी मान्यताएँ तथा अन्य बातें हमें प्रभावित किए हुए हैं। और हम इनके अन्तर्गत अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हम अपने समाज में ही रहते हैं, अपने स्तर, अपनी बोली, अपने समान व्यवसाय करने वाले लोगों के साथ हमारा सम्बन्ध होता है। हम दूसरे वर्ग के लोगों से सम्बन्ध तो रखते हैं किन्तु घनिष्ठता का नहीं रख पाते। 

किन्तु आज से लगभग दो हज़ार वर्ष पहले गुलगुता में जो घटना हुई उसने सब कुछ बदल कर रख दिया। परमेश्वर के लोग केवल इस्राएली थे। केवल शारीरिक रुप से इस्राएली व्यक्ति ही परमेश्वर के परिवार, कुटुम्ब, उसकी प्रजा, प्रतिज्ञा की गई वाचाओं के भागीदार थे। इन सबके अलावा, और सब लोग अन्यजाति थे, और परमेश्वर रहित, आशाहीन और परमेश्वर की प्रजा कहलाए जाने से वंचित थे। 

यीशु का बलिदान के द्वारा हम कलीसिया में आत्मिक परिवार के सदस्य बनते हैं।

परमेश्वर के विशेष लोग केवल इस्राएली थे जो इब्राहीम के वंश से आए थे। और वे इस बात पर गर्व करते थे कि परमेश्वर उनका अपना है। केवल वे ही उसके लोग हैं। वे ही ख़तना वाले हैं। केवल वे ही उत्तराधिकारी हैं। और परमेश्वर के लोग तथा अन्य लोग लोगों के मध्य में कोई सम्बन्ध नहीं था। इस्राएली और ग़ैर-इस्राएली में कोई भी सम्बन्ध नहीं था। 

किन्तु परमेश्वर पुत्र यीशु ने कुछ ऐसा किया कि सब कुछ बदल गया। उसने क्रूस पर अपना लहू बहाया। उसने अपना बलिदान केवल इस्राएली लोगों के लिए नहीं दिया। उसने अपना लहू बहाया जिससे कि सब प्रकार के लोग, जो यीशु पर विश्वास करें, वे नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन पाएँ। अब जिसके पास पुत्र है, उसके पास जीवन है (1 यूहन्ना 5:12)। 

अब जो यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास करते हैं, वे सब उसके परिवार के लोग हैं। वे उसकी प्रजा के लोग हैं। यीशु ख्रीष्ट का लहू हमको परमेश्वर के साथ हमारा मेल-मिलाप कराता है। इसके साथ ही उसके लोगों के साथ हमारा मेल कराता है। 

यीशु हमारे एक-दूसरे के साथ आत्मिक सम्बन्ध का केन्द्र है।

अब यदि हम विश्वासी हैं, तो हमारा दूसरे विश्वासियों के साथ सम्बन्ध है। कोई भी अब भेद-भाव नहीं रहा। यीशु ने क्रूस पर अपना लहू बहाने के द्वारा हमारे मध्य की दीवार को तोड़ डाला है। हमारे मध्य की खाई को उसने पाट दिया है। हमारे मध्य के बैर का उसने नाश कर दिया है (इफिसियों 2) हमारा मेल-मिलाप कराने के लिए उसने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, कि उसने अपने प्राण दे दिया। 

इसलिए जब हम विश्वास करते हैं तो हम कलीसिया के भाग बनते हैं। परमेश्वर ने अपनी दया में होकर अपनी कलीसिया में सब प्रकार के लोगों, सब जाति के लोगों, स्त्री-पुरुष, धनी-निर्धन, पढ़े-लिखे अनपढ़, किसी भी भाषा, किसी भी देश, प्रान्त के लोगों को अपनी प्रजा में सम्मिलित कर रहा है। हम हमारा एक-दूसरे के साथ यीशु के कारण सम्बन्ध है। वे जिनसे हम दूर भागते थे, जिनके साथ खाना नहीं खा सकते थे, जिनके साथ बैठ नहीं सकते थे, अब हम कलीसिया में उनके साथ परिवार के रुप में रहते हैं। यह सब क्रूस पर हुई घटना के कारण सम्भव हुआ है। 

इसलिए जब हम लोग शुभ शुक्रवार (गुड फ्राइडे) के समय यीशु के क्रूस को स्मरण कर रहे हैं, कृपया परमेश्वर को धन्यवाद दें कि उसने अपने अनुग्रह में होकर हमें कलीसिया में एक दूसरे से मेल-मिलाप कराया है। उसने हमें आत्मिक परिवार दिया है जो अभी हमारे साथ हैं और यीशु के कारण सदा तक प्रभु के साथ रहेंगे। 

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
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