परन्तु ठोस भोजन तो बड़ों के लिए है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँ अभ्यास के कारण भले-बुरे की पहिचान करने में निपुण हो गई हैं। (इब्रानियों 5:14)
अब यह बात तो अद्भुत है। इससे चूक मत जाइएगा। यह आपको वर्षों के व्यर्थ जीवन से बचा सकता है।
यह पद कह रहा है कि यदि आप परिपक्व बनना चाहते हैं और वचन की अधिक ठोस शिक्षाओं को समझना और उनकी सराहना करना चाहते हैं, तो परमेश्वर के सुसमाचार की प्रतिज्ञाओं के समृद्ध, पौष्टिक, बहमूल्य दूध को आपकी नैतिक इन्द्रियों को — आपके आत्मिक मन को — परिवर्तित करना होगा जिससे कि आप भलाई और बुराई के मध्य में भेद कर सकें।
या, मुझे इसे दूसरी रीति से बताने दें। परमेश्वर के सम्पूर्ण वचन से भोजन करने के लिए तैयार होना कोई बौद्धिक चुनौती नहीं है; यह मुख्य रीति से नैतिक चुनौती है। यदि आप वचन का ठोस भोजन खाना चाहते हैं, तो आपको अपनी आत्मिक ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग करना चाहिए जिससे कि एक ऐसा मस्तिष्क विकसित हो सके जो भले और बुरे के मध्य में अन्तर कर सके। यह केवल बौद्धिक नहीं, वरन् नैतिक चुनौती है।
चौंकाने वाला सत्य यह है कि, यदि आप उत्पत्ति और इब्रानियों में मलिकिसिदक को समझने में ठोकर खाते हैं, तो यह सम्भवतः इसलिए है क्योंकि आप सन्देहास्पद टी.वी कार्यक्रम देखते हैं। यदि आप चुनाव के सिद्धान्त पर ठोकर खाते हैं, तो यह सम्भवतः इसलिए है क्योंकि आप अभी भी अपनी व्यावसायिक संदिग्ध प्रथाओं में लगे हुए हैं। यदि आप क्रूस पर ख्रीष्ट के परमेश्वर-केन्द्रित कार्य को लेकर ठोकर खाते हैं, तो यह सम्भवतः इसलिए है क्योंकि आप धन से प्रेम करते हैं और अपने पर अत्यधिक व्यय करते हैं किन्तु बहुत थोड़ा ही देते हैं।
परिपक्वता और बाइबलीय भोजन की ओर बढ़ने के लिए सर्वप्रथम ज्ञानी व्यक्ति बनना नहीं है, परन्तु आज्ञाकारी व्यक्ति बनना है। आप मदिरा और यौन सम्बन्ध और धन और अवकाश का समय और भोजन और कम्प्यूटर के साथ क्या करते हैं, और जिस रीति से आप दूसरे लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसका सम्बन्ध आपके ठोस भोजन खाने की क्षमता से अधिक है, न कि इस बात से कि आप कहाँ स्कूल जाते हैं या आप कौन सी पुस्तकें पढ़ते हैं।
यह इतना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हमारे उच्च तकनीकी समाज में हम यह सोचते हैं कि शिक्षा — विशेष रूप से बौद्धिक शिक्षा — परिपक्वता की कुंजी है। बहुत से पीएच.डी. युक्त लोग हैं जो परमेश्वर से सम्बन्धित बातों को अपनी आत्मिक अपरिपक्वता के कारण ग्रहण नहीं कर पाते हैं। और बहुत से ऐसे सन्त हैं जो कम पढ़े-लिखे हैं किन्तु अत्यन्त परिपक्व हैं और परमेश्वर के वचन की गहनतम बातों के आनन्द और लाभ से तृप्त किए जाते हैं।