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बाइबल आधारित सुसमाचार क्या है और क्या नहीं है?

जब हम सुसमाचार के विषय में बात करते हैं तो हमें दो बातों पर विचार करना चाहिए कि बाइबल पर आधारित सुसमाचार क्या है और क्या नहीं हैं?- इसका अर्थ क्या है? क्या हम दो भिन्न सुसमाचार की बात कर रहे हैं? बाइबल हमें केवल एक ही सुसमाचार के विषय में बताती है। 1 कुरिन्थियों 15:1 में प्रेरित पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को वह सुसमाचार बता रहे हैं जो पहिले सुना चुके थे, जिसका उन लोगों ने अंगीकार भी किया था। वह कोई नया सुसमाचार नहीं सुना रहे थे। गलातियों की पत्री में वह कहते हैं कि यदि कोई स्वर्गदूत या कोई व्यक्ति आकर उस सुसमाचार को छोड़ कोई और / दूसरा सुसमाचार सुनाये जो उन्हें पहले सुनाया गया था, तो वह श्रापित है (गलातियों1:8)। ये बातें स्पष्ट करती हैं कि सुसमाचार केवल एक ही है। यह सुसमाचार व्यक्तिगत विचार, धारणा, सामाजिक विधियों, नियमों पर भी आधारित नहीं है। प्रेरित पौलुस लिखते हैं कि यह सुसमाचार पवित्रशास्त्र के वचन के अनुसार है और उस पर आधारित है (1 कुरिन्थियों 15:3)।  इस लेख में हम देखेंगे कि बाइबल आधारित सुसमाचार क्या है और क्या नहीं है – 

बाइबल आधारित सुसमाचार
बाइबल पर आधारित सुसमाचार वह सुसमाचार है जिसका बाइबल वर्णन करती है, जिसका यीशु ने और उनके चेलों ने भी प्रचार किया। इस सुसमाचार के विषय में निम्न बातों को देख सकते हैं –

बाइबल आधारित सुसमाचार हमें इस संसार के सीमित जीवनकाल की सोच से बाहर निकालकर अनन्त जीवन के विषय में सोचने के लिए अवसर देता है, क्योंकि सुसमाचार अनन्त जीवन पर केंद्रित है।

हमारे अनन्त जीवन को सम्बोधित करता है
प्रायः लोग अपने अनन्त जीवन के विषय में गम्भीरता से नहीं सोचते हैं; उस पर ध्यान नहीं देते हैं। वह भौतिक बातों पर बहुत केंद्रित होते हैं या दूसरे शब्दों में स्वकेंद्रित होते हैं। इस संसार में जीने के लिए वस्तुओं की आवश्यकता, आनन्द, मनोरंजन, परिवार का उत्तरदायित्व, बच्चों का भविष्य इत्यादि जैसे विषयों के बाहर प्रायः मनुष्य नहीं सोचता है। बाइबल आधारित सुसमाचार हमें इस संसार के सीमित जीवनकाल की सोच से बाहर निकालकर अनन्त जीवन के विषय में सोचने के लिए अवसर देता है, क्योंकि सुसमाचार अनन्त जीवन पर केंद्रित है। यह इसलिए है क्योंकि मनुष्य की सबसे मुख्य आवश्यकता उसका उद्धार है जो केवल अनन्त जीवन से जुड़ा हुआ है। परमेश्वर ने मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हुए, मनुष्य की इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपने पुत्र यीशु ख्रीष्ट को भेजा और यीशु के द्वारा मनुष्यों को अनन्त जीवन को प्राप्त करने का अवसर दिया (यूहन्ना 3:16-17)। 

मनुष्य की वास्तविकता को दर्शाता है 
प्रत्येक मनुष्य अपने विषय में अच्छा सोचता है और अपने कार्यों, गुणों, बुद्धि और ज्ञान पर घमण्ड और भरोसा भी करता है। परन्तु बाइबल आधारित सुसमाचार इसके विपरीत बात करता है। यह सुसमाचार बताता है कि मनुष्य पापी है, आत्मिक रूप से मरा हुआ है और परमेश्वर के क्रोध की सन्तान है (इफिसियों 2:1-3)। उसका जीवन पाप में डूबा हुआ है और उसके सारे कार्य अधर्म के हैं (भजन संहिता 14:1-3)। क्योंकि मनुष्य पापी और अधर्मी है, परमेश्वर का क्रोध मनुष्य के ऊपर ठहरा हुआ है और मनुष्य दण्ड के योग्य है।  वह अपने प्रयास से वह अपने आप को इस दण्ड से बचा नहीं सकता। यह वास्तविकता मनुष्य को बाइबल आधारित सुसमाचार अवगत कराता है। यदि मनुष्य की यह वास्तविकता है तो फिर मनुष्य की सहायता कौन कर सकता है ? यह कैसे सम्भव हो सकता है ? इसका उत्तर है यीशु ख्रीष्ट। 

यीशु ख्रीष्ट के कार्य को सम्बोधित करता है
बाइबल आधारित सुसमाचार के अनुसार हमारा अनन्त जीवन हमारे कार्यों पर आधारित नहीं है। यह सुसमाचार क्रूस पर यीशु के प्रायश्चित रूपी बलिदान के सत्य को प्रस्तुत करता है। यीशु ने यह बलिदान हमारे स्थान पर दिया जिसके द्वारा हम परमेश्वर पिता से हमारे पापों की क्षमा प्राप्त करते हैं। यह एक सामान्य बलिदान नहीं था पर यह एक सिद्ध और बहुमूल्य बलिदान था। यीशु के इस बलिदान को परमेश्वर ने ग्रहण इसीलिए किया क्योंकि यीशु ने एक सिद्ध आज्ञाकारिता का जीवन व्यतीत किया और पिता परमेश्वर को प्रसन्न किया। यदि यीशु ने हमारे निमित्त यह बलिदान न दिया होता तो हम अनन्त जीवन को प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि यह संभव नहीं था कि हम यह अपने लिए कुछ कर पाते (गलातियों 1:4, इफिसियों 1:7, 5:2, रोमियों 5:8, 1 पतरस 1:18-19)।

यदि बाइबल आधारित सुसमाचार यह है तो बाइबल आधारित सुसमाचार क्या नहीं है? वह क्या बातें हैं जो सुसमाचार को बाइबल केंद्रित नहीं बनता है?

सुसमाचार क्रूस पर यीशु के प्रायश्चित रूपी बलिदान के सत्य को प्रस्तुत करता है

बाइबल पर आधारित सुसमाचार क्या नहीं है?
जो समाचार जो बाइबल की शिक्षा के विपरीत व विरोधाभाषात्मक हो और यीशु मसीह जीवन और कार्य पर आधारित न हो, वह सुसमाचार बाइबल पर आधारित सुसमाचार नहीं है। जो बाइबल पर आधारित सुसमाचार नहीं उस पर हम ध्यान दें और पहचानें-

भौतिकतावाद सुसमाचार नहीं है
कई बार लोग सुसमाचार को भौतिकतावाद के दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं। उनके लिए यीशु का केवल इतना ही महत्व है कि वह मनुष्यों की आवश्यकता की पूर्ति करता है। क्योंकि यीशु परमेश्वर है और उसके पास सामर्थ है, इसीलिए वह हमारी आवश्यकता को पूरी कर सकता है। इस प्रकार के सुसमाचार में मनुष्य का सम्बन्ध परमेश्वर के साथ एक व्यावसायिक सम्बन्ध जैसा प्रतीत होता है। हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के बदले हम यीशु की आराधना करते हैं और उसकी स्तुति-प्रशंसा करते हैं। इससे से अधिक इन सम्बन्ध में और कुछ नहीं है। इस संसार में क्लेश और दुःख रहित जीवन जीना आशीष के रूप में देखा जाता है और इस आशीष को ही जीवन का केंद्र-बिंदु बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार के सावधान से बचें क्योंकि यह बाइबल पर आधारित व वास्तविक सुसमाचार नहीं है।

सुसमाचार में पाप को सम्बोधित न करना 
जो सुसमाचार बाइबल केंद्रित नहीं है, उस सुसमाचार में पाप, उसकी गम्भीरता, परिणाम और उससे से छुटकारे के विषय पर कोई बात नहीं होती है। क्योंकि पाप का विषय लोगों को / सुननेवालों को असहज करता है, इसलिए इस विषय पर कोई बात नहीं होती है। परमेश्वर का पाप के प्रति क्रोध –  इस सत्य को सुसमाचार में प्रस्तुत नहीं किया जाता है। मनुष्य का पाप से छुटकारा पाने की आवश्यकता के विषय में बताया नहीं जाता है पर निर्धनता दुःख, कष्ट, बीमारी आदि से छुटकारा पाने के विषय में बताया जाता है। हमारे पापों की क्षमा के लिए यीशु के लहू का बहाये जाने के महत्व पर कोई बात नहीं होती  है, पर यीशु के लहू के द्वारा कैसे भौतिक आशीष मिल सकती हैं, उस विषय पर बताया जाता है। 

प्रिय पाठकों, इस प्रकार के सुसमाचार के पीछे मत जाइए, परन्तु बाइबल पर आधारित सच्चे सुसमाचार पर विश्वास करें और थामें  रहें, जिसका परिणाम अनन्त जीवन, पापों की क्षमा और परमेश्वर के साथ संगति है। भले ही लोग कितने प्रकार के सुसमाचार को लेकर आएं, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बाइबल आधारित सुसमाचार हमें परमेश्वर, मनुष्य की पापपूर्ण स्थिति, यीशु के जीवन और कार्य तथा हमारे अनन्त जीवन और अनन्तः परमेश्वर की महिमा के विषय में बात करता है।

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मोनीष मित्रा
मोनीष मित्रा

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

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