यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना एक भयंकर, दर्दनाक, शर्मनाक घटना थी। किन्तु क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले जब वह यहूदा इस्करियोती द्वारा पकड़वाये गए तो उसके बाद उन पर मुकदमा चलाया गया। उनको पिलातुस के पास तथा हेरोदेश के पास ले जाया गया। उसी समय रोमी सैनिकों द्वारा किए गए व्यवहार पर हम दृष्टि डाल सकते हैं। बाइबल वर्णन करती है कि यीशु को क्रूसीकरण के मार्ग में भयंकर दुख भोगना पड़ा।
वह जो त्रिएकता का दूसरा जन है, जो सृष्टिकर्ता है, जो सब कुछ को अपने सामर्थ्य से सम्भाले हुए है। किन्तु वह जगत में देहधारण करके आया तब उसके दुखभोग को देखते हैं। हम सैनिको के कथन और उनके कार्य पर विचार करते हैं तो हम देखते हैं कि ये सैनिक रोमी सरकार के लिए समर्पित हैं। वे प्रताड़ित करना जानते हैं। वे इन सब कार्य में बहुत निपुण हैं। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रीति से कैसे उनको यातना देना है वे इन सब कार्य में बहुत ही कुशल हैं। यीशु पकड़वाये जाने के बाद महायाजक के पास जब ले जाए गए, तब महायाजक के पास वार्तालाप के समय पास खड़े सिपाहियों में से एक ने यह कहते हुए घूँसा मारा: क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।
हमारी सृष्टि करने वाला परमेश्वर अपने प्रेम में होकर सृष्टि से दुख उठाने आ गया।
उसके बाद वे उसके कपड़े उतार कर मज़ाक उड़ाने के लिए, घोर बेइज्जती करने के लिए राजसी वस्त्र पहनाते हैं। उसके सिर पर मुकुट पहनाते हैं, वह भी कांटो का मुकुट उसके सिर पर गूँथकर रखते हैं। कितना भयंकर दृश्य है! केवल इतना ही नहीं, वे उसके सामने झुकते हैं, जैसे वे राजा के सामने झुकते थे, किन्तु सम्मान में नहीं, वरन अपमान करने के लिए। वे उसको यहूदियों का राजा सम्बोधित करते हुए बेइज्जती कर रहे हैं। वे उसके सामने घुटने टेक कर उसे प्रणाम कर रहे थे। वे उसकी आँखो को ढ़ांपते हुए मार रहे थे और कह रहे थे कि भविष्यवाणी कर कि किसने तुझे मारा?
उस दृश्य पर विचार कीजिए, सिपाही उसे पीट रहे हैं। वे उस पर थूक रहे हैं। सरकण्डे से वे उसके सिर पर मार रहे हैं। वे उसकी निन्दा करते हुए उसके विरुद्ध कई और बातें बोल रहे है। वे उसको कोड़ों से मार रहे हैं। उन्होंने उसके कपड़े आपस में बाँट लिए। और उन्होंने भी माँग की कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाओ (मत्ती 27:29, मरकुस 15:16, लूका 22:63-65, यूहन्ना 18:22, 19)। इसके बाद सैनिक यीशु को गुलगुता नामक स्थान पर लेकर जाते हैं और क्रूस पर उसे कीलों से ठोक कर लटका देते हैं। वहाँ पर भी वह सैनिक, डाकू तथा अन्य आने जाने वाले लोगों द्वारा अपमानित होता है।
हम और आप जब यीशु के विषय में यह पढ़ते हैं तो हमारे मस्तिष्ट में क्या आता है? क्या यह यीशु अपने किसी पाप के कारण दुखों में है? बिल्कुल नहीं। उसमें कुछ भी दोष नहीं है। पिलातुस भी उसमें कोई दोष नहीं पाता। किन्तु राजनीतिक एवं धार्मिक अगुवे उसको मार डलवाना चाहते हैं।
यीशु ने हमारे लिए पीड़ा सहा जिससे कि हम अनन्त काल तक नरक की पीड़ा से बच सकें।
विचार कीजिए, जब यीशु के साथ ये सब घटनाएँ हो रही हैं, यह सब पुराने नियम में की गई भविष्यवाणी की पूर्ति है। जो मसीहा आने वाला था, जो दाऊद के वंश से राजा आने वाला था, वह यही है जो हमारे और आपके पापों के लिए दुख उठा रहा है। यह है सच्चा राजा, जो अपनी प्रजा के लोगों के पापों के लिए स्वयं को पापी मनुष्यों के हाथ में सौंप रहा है।
विचार कीजिए, यीशु ख्रीष्ट जो इस संसार का सृष्टिकर्ता है, वह अपनी सृष्टि से कष्ट उठा रहा है। जब हम अपने जीवन को देखते हैं तो हम इस बात को पाते हैं कि हम इन प्रताड़ित करने वाले लोगों की भीड़ के भाग थे। किन्तु वह हमारे और आपके लिए अपमानित हो रहा है कि हम परमेश्वर की दृष्टि में सम्मानित हो सकें। वह कष्ट सह रहा है जिससे कि वह कष्टों से स्वतन्त्र हो सकें। वह कोड़ों की मार सह रहा है जिससे कि हम उसके कोड़े खाने से चंगे हो सकें।
तो इन दिनों जब हम यीशु ख्रीष्ट के क्रूसीकरण के विषय में विचार करें, तो अवश्य ही यीशु द्वारा हमारे पापों के लिए सहे गए पीड़ाओं पर ध्यान दें और प्रभु जी के प्रति धन्यवादी हों।