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कलीसिया में बच्चों की सेवकाई क्यों आवश्यक है?

कलीसिया में सब व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में महत्वपूर्ण हैं, चाहे वे पुरूष हों, या स्त्री या बच्चे! परमेश्वर सब से प्रेम करता है और वह चाहता है कि सब उसको अपने जीवन से महिमा दें। जब कलीसिया में लोग इकट्ठे होते हैं तो उनमें बच्चे भी होते हैं, जिन्हें हम कम महत्वपूर्ण समझते हुए अनदेखा नहीं कर सकते हैं। यदि हम और आप बचपन में कलीसिया की सण्डे स्कूल में गए होंगे तो हम इसके महत्व को भली रीति से जानते हैं। यद्यपि बच्चों के आत्मिक जीवन का  प्रमुख उत्तरदायित्व  माता-पिता एवं उसके परिवार के सदस्यों पर है, परन्तु कलीसिया भी बच्चों के जीवन के लिए उत्तरदायी है। आईये हम ध्यान दें कि कलीसिया में सण्डे स्कूल की आवश्यकता क्यों है! 

बच्चों की सबसे बड़ी आवश्यकता सुसमाचार है: प्रत्येक मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात को जानना है कि वह पापी है और उसे उद्धार पाने के लिए ख्रीष्ट की आवश्यकता है। जब कलीसिया में बच्चे आते हैं तो उन्हें भी आवश्यकता है कि वे जानें कि उनको परमेश्वर ने बनाया है। आदम के वंशज होने के कारण वे भी पापी हैं और उन्हें यीशु ख्रीष्ट की आवश्यकता है। उनको न तो उनके माता-पिता, न उनके प्रिय मित्र, न ही संसार की कोई वस्तु उन्हें पाप से बचा सकती है। सबसे पहले उन्हें जानना है कि परमेश्वर ने उन्हें बनाया है तथा उनके पूर्वजों के पाप के कारण वे भी पाप के सन्तान हैं और उनको पाप का दण्ड मिलेगा। परन्तु यीशु ख्रीष्ट पर भरोसा रखने तथा अपने पापों से पश्चाताप करने के द्वारा वे पाप से बच सकते हैं। परमेश्वर उनसे प्रेम करता है, यीशु बच्चों से प्रेम करते थे, और वे चाहते हैं कि सब बच्चे उस पर विश्वास करें और उससे प्रेम करे। 

उनके स्तर के अनुसार उनको वचन सिखाया जा सके – हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ पर बहुत बहुत सारी संस्कृतियों का प्रभाव है। कलीसिया में आने वाले बच्चों का अधिकतर समय सांसारिक माहौल में व्यतीत होता है। इसलिए आवश्यक है कि बच्चों को सण्डे स्कूल में ऐसा वातावरण दिया जाए जहाँ पर वे प्रार्थना में समय बिताएं, वचन की शिक्षा प्राप्त करें, तथा उन मित्रों के साथ समय व्यतीत करें जो पवित्रशास्त्र से परिचित हैं। बच्चों के पास बहुत सारी जिज्ञासाएँ हैं जिनका बाइबलीय आधार पर उत्तर देना आवश्यक है। ऐसे वातावरण में बाइबल का सही ज्ञान बच्चों को दिया जाता है। बच्चों को प्रभु के भय में जीवन व्यतीत करने में सहायता करने के लिए योगदान किया जाता है। 

वे अन्य बच्चों के साथ व्यवहारिक बातों को सीखें- कलीसिया में बच्चों के पास अच्छा अवसर सण्डे स्कूल में होता है, जहाँ पर वे अन्य बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं। एक साथ परमेश्वर के वचन को सीखते हैं। एक-दूसरे के साथ खेलते हैं, आनन्द लेते हैं, सण्डे स्कूल की अन्य सब गतिविधियों में साथ देते हैं। इससे उनके पास ख्रीष्टीय वातावरण में बच्चों के साथ सीखने और व्यवहार में बढ़ने में सहायता मिलती है। उन्हें बचपन में अच्छे मित्र मिलते हैं, और वे वास्तव में पवित्रशास्त्र की शिक्षा के अनुसार प्रभु का भय मानने वाले, नैतिक जीवन जीने, आज्ञाकारिता का जीवन जीने, ख्रीष्ट के पीछे चलने के लिए अग्रसर होते हैं।

कलीसिया के महत्व को समझ सकें- अत: प्रत्येक कलीसिया में यदि सम्भव है तो आवश्यक है कि बच्चों के लिए एक कक्षा अवश्य होनी चाहिए जहाँ पर बच्चों को उनके स्तर के अनुसार वचन की सही शिक्षा प्रदान की जाए। ताकि वे कलीसिया के अर्थ को भी समझ सकें और भविष्य में कलीसिया के सदस्य हो सकें। उनको अच्छा वातावरण दिया जाए ताकि वे अन्य बच्चों के साथ मिल-जुल कर रहें, मित्रता में बढ़ें, शिक्षकों के जीवन से सीखें। उनको यीशु का क्रूस पर बलिदान होने का उद्देश्य बताएं ताकि वे सुसमाचार को जानें और वे भी ख्रीष्ट पर विश्वास कर सकें।  

अत: बच्चों के माता-पिता मुख्य रूप से अपने बच्चों को बाइबल तथा परमेश्वर के विषय में सत्यों को सिखाने के लिए उत्तरदायी हैं (इफिसियों 6:4)। किन्तु कलीसिया जो कि आत्मिक परिवार है उसमें कलीसिया माता-पिताओं की अपने बच्चों के आत्मिक पालन-पोषण के इस उत्तरदायित्व में यथा सम्भव सहायता प्रदान करने का प्रयास करती है। सुसमाचार पर विशेष बल देते हुए बच्चों को पवित्रशास्त्र की शिक्षा प्रदान करती है  (व्यवस्थाविवरण 6:6-9; रोमियों 1:16-17)। बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करती है जिससे कि जब वे वयस्क हों तब वे परमेश्वर के साथ चलें, सार्वजनिक सभाओं का भाग बनें और परमेश्वर की इच्छा से कलीसिया के औपचारिक सदस्य बनें।  

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
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