परमेश्वर के लोगों की कल्पना एक ऐसे पशुशाला के रूप में कीजिए जिस में सब प्रकार के पशु हों। परमेश्वर अपने पशुओं की देखभाल करता है, वह उन्हें दिखाता है कि उनको कहाँ जाना चाहिए और उनकी सुरक्षा के लिए वह एक बाड़ा प्रदान करता है।
किन्तु इस पशुशाला में एक ऐसा पशु है जो परमेश्वर के लिए बड़ी कठिनाई उत्पन्न करता है, और वह पशु है खच्चर। वह मूर्ख है तथा वह हठी भी है और उसमें ये दोनों अवगुण – हठीपन और मूर्खता – समान रूप से पाए जाते हैं।
अब जिस प्रकार से परमेश्वर को अपने पशुओं को बाड़े में खाने और रहने के लिए ले जाना प्रिय है, वह है उनको यह सिखाना कि उनका एक व्यक्तिगत नाम है और फिर उन्हें उस नाम से बुलाना। “मैं तुझे बुद्धि दूँगा और जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसमें तेरी अगुवाई करूँगा” (भजन 32:8)।
किन्तु खच्चर इस प्रकार के निर्देश का प्रतिउत्तर नहीं देगा। क्योंकि वह बिना समझ वाला जीव है। इसलिए परमेश्वर अपनी गाड़ी लेकर मैदान में जाता है और लगाम तथा रास खच्चर के मुँह में डालता है तथा उसे अपनी गाड़ी से बाँधता है और उसे बलपूर्वक घसीटते हुए बाड़े तक खींचकर ले जाता है।
पर परमेश्वर नहीं चाहता है कि उसके पशु इस प्रकार से उसके पास आशिष और सुरक्षा के लिए आएँ।
ऐसे में एक दिन उस खच्चर के लिए बहुत विलम्ब हो चुका होगा। वह बुरी रीति से ओलों से मार खाएगा तथा बिजली की चमक से भ्रमित हो जाएगा, और फिर जब वह दौड़ते हुए आएगा तब तक बाड़े का द्वार बन्द हो चुका होगा।
इसलिए खच्चर के समान न बनें। “घोड़े और खच्चर के समान न बनें जिनमें समझ नहीं होती है, जिन्हें नियन्त्रित करने के लिए लगाम और रास होती है।”
इसके विपरीत, प्रत्येक भक्त ऐसे समय में परमेश्वर से प्रार्थना करे जब वह मिल सकता है (भजन 32:6)।
खच्चर न बनने की विधि है स्वयं को दीन करना, प्रार्थना में परमेश्वर के पास आना, अपने पापों का अंगीकार करना, और पशुशाला के एक छोटे से मुर्गी के बच्चे के रूप में परमेश्वर की सुरक्षा और प्रावधान हेतु बाड़े में उसके निर्देश को मानना।