क्षमा कैसे माँगे।

मुझे स्मरण आता है कि मेरे धर्मविद्यालय के एक प्राध्यापक ने मुझ से कहा था कि किसी व्यक्ति के ईश्वरविज्ञान की उत्तम परख यह है कि उसकी प्रार्थना पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है।

मेरे जीवन में जो कुछ भी हो रहा था उसके कारण मुझे यह बात सत्य जान पड़ी। नोएल और मेरा कुछ समय पहले ही विवाह हुआ था और हम दोनों एक साथ मिलकर प्रत्येक संध्या प्रार्थना करने का अभ्यास कर रहे थे। मैंने इस बात पर ध्यान दिया कि बाइबलीय कक्षाओं के समय जो कि मेरे ईश्वरविज्ञान को सर्वाधिक परिवर्तित कर रही थीं, मेरी प्रार्थनाओं में भी बड़ा परिवर्तन हो रहा था। 

सम्भवता उन दिनों सबसे बड़ा परिवर्तन यह था कि मैं अपनी प्रार्थनाओं को परमेश्वर की महिमा के आधार पर बनाना सीख रहा था। “तेरा नाम पवित्र माना जाए” से आरम्भ करके “यीशु के नाम में माँगते हैं” से अन्त करने का अर्थ था कि प्रार्थना में मैंने जो कुछ भी कहा है, उसका लक्ष्य और आधार परमेश्वर के नाम की महिमा ही थी।

और मुझे इस बात से अत्याधिक बल तब मिला जब मैंने सीखा कि क्षमा के लिए प्रार्थना केवल परमेश्वर की दया के लिए गुहार पर आधारित नहीं होनी चाहिए किन्तु उसके न्याय की गुहार लगानी चाहिए कि वह अपने पुत्र की आज्ञाकारिता के मूल्य को हमारे पक्ष में गिने। परमेश्वर विश्वासयोग्य एवं धर्मी है और वह हमारे पापों को क्षमा करेगा (1 यूहन्ना 1:9)।

नए नियम में पापों की सम्पूर्ण क्षमा का आधार, पुराने नियम से अधिक स्पष्ट रीति से प्रकट किया गया है। किन्तु उस आधार अर्थात् परमेश्वर का अपने नाम के प्रति समर्पण में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

पौलुस शिक्षा देता है कि ख्रीष्ट की मृत्यु ने अब तक पापों को भुला दिये जाने में परमेश्वर की धार्मिकता को प्रकट किया है, और परमेश्वर के न्याय को भी उचित ठहराया है जिसमें परमेश्वर प्रत्येक उस अधर्मी को धर्मी ठहराता है जो स्वयं पर नहीं परन्तु यीशु पर विश्वास करता है (रोमियों 3:25)।

दूसरे शब्दों में, ख्रीष्ट एक ही बार परमेश्वर के नाम को उस बात में निर्दोष ठहराने के लिए मर गया जो कि न्याय का गला घोटने जैसा कार्य प्रतीत हो रहा था — अर्थात् यह कि दोषी पापियों को केवल यीशु के कारण ही दोषमुक्त कर दिया गया था। परन्तु यीशु इस रीति से मरा कि “यीशु के नाम के कारण” क्षमाप्राप्ति, ठीक वही क्षमाप्राप्ति है जो “परमेश्वर के नाम के कारण” है। न्याय का गला नहीं घोटा गया है। परमेश्वर-को-आदर-प्रदान करने वाले इस बलिदान के द्वारा परमेश्वर का नाम, उसकी धार्मिकता, उसके न्याय को उचित ठहराया गया है।

जैसा कि यीशु ने अपनी उस अन्तिम घड़ी का सामना करते समय कहा, “अब मेरा जी व्याकुल हो उठा है। क्या मैं यह कहूँ, ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी अभिप्राय से इस घड़ी तक पहुँचा हूँ। हे पिता, अपने नाम की महिमा कर” (यूहन्ना 12:27-28)। यही तो उसने किया — जिस से कि वह स्वयं धर्मी ठहरे तथा उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो जो यीशु पर विश्वास करता है (रोमियों 3:26)।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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