आपकी भलाई करने में परमेश्वर का आनन्द  
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

“हे छोटे झुण्ड, मत डर! क्योंकि तुम्हारे पिता ने प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें राज्य देना चाहा है।” (लूका 12:32)

यीशु हाँथ पर हाँथ रखे नहीं बैठा रहेगा कि हम अविश्वास में बिना संघर्ष के बने रहें। वह वचन का अस्त्र धारण करता है और उसे सामर्थ्य के साथ उन सबके लिए बोलता है जो विश्वास करने में संघर्ष करते हैं। 

उसका लक्ष्य इस भय को पराजित करना है कि परमेश्वर उस प्रकार का परमेश्वर नहीं है जो वास्तव में हमारे प्रति भला होना चाहता है — अर्थात् वह वास्तव में उदार और सहायक तथा दयालु और नम्र नहीं है, परन्तु वह मूल रूप से हमसे खिन्न है — उखड़ा हुआ है और क्रोधित है। 

भले ही हम कभी-कभी अपने मनों में यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर हमारे प्रति भला है, फिर भी हम अपने हृदय में कुछ ऐसा आभास कर सकते हैं कि उसकी भलाई अनैच्छिक या सीमित है, सम्भवतः वह उस न्यायधीश के समान है जिसे एक चतुर अधिवक्ता ने न्यायालय के कानूनी विधियों के द्वारा ऐसा विवश किया हो, कि अब उसे उस बन्दी के विरुद्ध लगे आरोपों को हटाना पड़ेगा जिसे वह वास्तव में बंदीगृह में भेजना चाहता था। 

परन्तु यीशु इसके लिए कठिन प्रयास करता है कि हम परमेश्वर के विषय में ऐसा विचार न रखें। लूका 12:32 में वह हमारे लिए इस बात को दिखाने का भरसक प्रयास कर रहा है कि परमेश्वर के आत्मा का अवर्णनीय मूल्य और महानता इस बात में है कि वह हमें राज्य देने में अत्याधिक आनन्द को प्राप्त करता है।     

“हे छोटे झुण्ड, मत डर! क्योंकि तुम्हारे पिता ने प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें राज्य देना चाहा है।” इस उत्तम वाक्य के प्रत्येक छोटे से शब्द का उद्देश्य उस भय को दूर करने में सहायता करना है जिसे यीशु जानता है कि उससे हम संघर्ष करते हैं; अर्थात् परमेश्वर अपने लाभों को प्रदान करने में कुढ़ता है; जब वह अच्छी बातों को करता है तो वह सीमितता में ऐसा करता है और अपने चरित्र के विरोध में कार्य कर रहा होता है; जबकि भीतर ही भीतर वह क्रोधित है और समय मिलते ही अपने क्रोध को प्रकट करना उसको भाता है। 

लूका 12:32 परमेश्वर के स्वभाव के विषय में एक वाक्य है। यह वाक्य बताता है कि परमेश्वर का हृदय किस प्रकार का है। यह पद इसके विषय में है कि परमेश्वर किस बात से आनन्दित होता है — न केवल इसके विषय में कि परमेश्वर क्या करेगा या उसे क्या करना है, किन्तु उसे आनन्द किस बात से प्राप्त होता है, उसे क्या करना भाता है और उसमें वह प्रसन्न होता है। इस पद के प्रत्येक शब्द महत्वपूर्ण हैं। “हे छोटे झुण्ड, मत डर! क्योंकि तुम्हारे पिता ने प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें राज्य देना चाहा है।”

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