शाऊल भी अपने घर गिबा को चला गया। उसके साथ वे सब शूरवीर भी गए जिनके हृदय को परमेश्वर ने उभारा था। (1 शमूएल 10:26)
इस विषय में सोचिए कि इस पद में क्या कहा जा रहा है। परमेश्वर ने उन्हें उभारा। किसी पत्नी ने नहीं। किसी बच्चे ने नहीं। किसी अभिभावक ने नहीं। किसी परामर्शदाता ने नहीं। परन्तु परमेश्वर ने। परमेश्वर ने उन्हें उभारा।
सम्पूर्ण सृष्टि में असीम सामर्थ्य रखने वाले ने। असीम अधिकार और असीम बुद्धि और असीम प्रेम और असीम भलाई और असीम शुद्धता और असीम न्याय रखने वाले ने। उसने उनके हृदय को उभारा।
बृहस्पति गृह का घुमाव किसी अणु के किनारे को कैसे उभारता है? उसके केन्द्रक तक पहुँचने की तो बात को छोड़ ही दीजिए।
परमेश्वर द्वारा उभारा जाना अद्भुत है न केवल इसलिए क्योंकि परमेश्वर उभारता है, परन्तु इसलिए क्योंकि यह उभारे जाने का कार्य है। यह एक वास्तविक सम्पर्क है। और यह अद्भुत है क्योंकि इसमें हृदय सम्मिलित है। यह अद्भुत है क्योंकि इसमें परमेश्वर सम्मिलित है। यह अद्भुत है क्योंकि इसमें एक वास्तविक उभारा जाना सम्मिलित है।
शूरवीरों से मात्र बात नहीं की जाती है। वे ईश्वरीय प्रभाव के द्वारा मात्र झुकाए नहीं गए। वे मात्र देखे और जाने नहीं गए। परमेश्वर ने असीम कृपालुता में होकर उनके हृदयों को उभारा। परमेश्वर इतना निकट था। और वे फिर भी भस्म नहीं हुए।
मैं उस उभारे जाने से प्रेम करता हूँ। मैं उसको अधिक से अधिक प्राप्त करना चाहता हूँ। मेरे लिए और आप सब के लिए। मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर अपनी महिमा के साथ और अपनी महिमा के लिए मुझे पुनः उभारे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह हम सब को उभारे।
परमेश्वर द्वारा उभारा जाना कितना अच्छा होगा। यदि वह आग के साथ आए, तो भी उचित है। यदि वह जल के साथ आए, तो भी उचित है। यदि वह वायु के साथ आए, तो हे परमेश्वर इसे आने दीजिए। यदि वह मेघगर्जन और बिजली के साथ आए, तो आइए हम उसके सामने झुकें।
हे प्रभु, आइए। इतना निकट आइए। जलाइए और भिगोइए और फूँकिए और गरजिए। या धीमे और छोटे रूप में, आइए। पूर्ण रीति से आइए। हमारे हृदयों को उभारिए।