क्योंकि जिस भलाई की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं कर पाता; परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही करता रहता हूँ। (रोमियों 7:19)
ख्रीष्टीयगण केवल पराजय में ही जीवन नहीं जीते हैं। और न ही हम सर्वदा पाप पर सिद्ध विजय में जीते हैं। तो उन समयों में जब हम पाप पर विजयी होने में असफल होते हैं, तो रोमियों 7:13-25 दिखाता है कि एक स्वस्थ्य ख्रीष्टीय को सामान्य रीति से कैसे प्रतिउत्तर देना चाहिए।
हमें कहना चाहिए:
- मैं परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करता हूँ (पद 22)
- मैंने जो कार्य अभी किया है उससे मैं घृणा करता हूँ (पद 15)
- मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? (पद 24)
- परमेश्वर का धन्यवाद हो! विजय मेरे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के द्वारा आएगी। (पद 25)
दूसरे शब्दों में, कोई भी ख्रीष्टीय पराजय में जीना नहीं चाहता है। कोई भी ख्रीष्टीय पराजय में जीने से सन्तुष्ट नहीं रहता है। किन्तु यदि हम कुछ समय के लिए पराजित हुए हैं, तो हमें इसके विषय में झूठ नहीं बोलना चाहिए।
कोई पाखण्ड नहीं। कोई दिखावा नहीं। सिद्धतापूर्णता के लिए कोई ढोंग नहीं। कोई झूठी मुस्कान या हसमुख उथलापन नहीं।
और इससे भी अधिक, परमेश्वर हमें अपनी असफलताओं के प्रति अन्धेपन और इसके परिणामस्वरूप दूसरों का न्याय करने में शीघ्रता से बचाता है।
हे परमेश्वर, हमारी सहायता करें कि हम दूसरों की विफलता से अधिक अपनी कमियों के विषय में दुखी हों।
हे परमेश्वर, हमें इस स्थल में प्रेरित पौलुस की सत्यता और स्पष्टवादिता और नम्रता प्रदान करें! “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो!” (रोमियों 7:24-25)।