विवाह में इतने क्लेश होने का कारण यह नहीं है कि पति और पत्नी केवल स्वयं के सुख की खोज करते हैं, किन्तु यह है कि वे इसे अपने जीवनसाथी के लिए सुख नहीं खोजते। पतियों और पत्नियों के लिए बाइबलीय आदेश है कि वे अपने जीवनसाथी के आनन्द में अपने आनन्द की खोज करें।
विवाह के सम्बन्ध में इफिसियों 5:25-30 से अधिक सुखवादी खण्ड कदाचित ही बाइबल में पाया जाता है। पतियों से कहा गया है कि वे अपनी-अपनी पत्नी से वैसा ही प्रेम करें जैसा ख्रीष्ट ने कलीसिया से प्रेम किया।
उसने कलीसिया से कैसे प्रेम किया? पद 25 कहता है कि उसने “स्वयं को उसके लिए दे दिया।” परन्तु क्यों? पद 26 कहता है, “कि उसको शुद्ध करके पवित्र बनाए।” किन्तु वह ऐसा क्यों करना चाहता था? पद 27 उत्तर देता है, “कि उसे महिमायुक्त कलीसिया बनाकर अपने समक्ष प्रस्तुत करे!”
आह! उत्तर मिल गया! “उस आनन्द के लिए जो उसके सामने रखा था, [उसने] क्रूस का दुःख सहा” (इब्रानियों 12:2)। किस आनन्द के लिए? अपनी दुल्हन अर्थात् कलीसिया से विवाह करने का आनन्द। कलीसिया को अपने लहू से मोल ली गई महिमा में अपने समक्ष प्रस्तुत करने का आनन्द।
यीशु एक कलंकित और अपवित्र पत्नी रखने की मनसा नहीं रखता है। इसलिए, वह मरने को तैयार था अपनी मंगेतर को पवित्र एवं शुद्ध करने के लिए जिससे कि वह अपने लिए “महिमायुक्त” पत्नी को प्रस्तुत कर सके। उसने अपनी दुल्हन की भलाई के लिए स्वयं को दुःख उठाने के लिए देने के द्वारा अपने हृदय की अभिलाषा को प्राप्त किया।
इसके पश्चात् पौलुस इस बात को पद 28-30 में पतियों पर लागू करता है: “इसी प्रकार उचित है कि पति भी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम करे। जो अपने पत्नी से प्रेम करता है वह स्वयं अपने आप से प्रेम करता है। कोई अपनी देह से घृणा नहीं करता, वरन् उसका पालन-पोषण करता है, जैसे कि ख्रीष्ट भी कलीसिया का पालन-पोषण करता है क्योंकि हम उसकी देह के अंग हैं।”यीशु ने पतियों और पत्नियों —और शेष सभी लोगों से कहा था— “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो” (मत्ती 22:39)। विवाह इसके लागूकरण का एक अद्भुत स्थान है। यह केवल अपने “जैसा” प्रेम करना नहीं है। किन्तु इसमें आप स्वयं से प्रेम कर रहे हैं। जब आप उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं जिसके साथ परमेश्वर ने आपको एक तन बनाया है, तो आप स्वयं से प्रेम कर रहे हैं। अर्थात्, आपका सबसे बड़ा आनन्द आपके अपने जीवनसाथी के सबसे बड़े आनन्द की खोज में मिलता है।