विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर अपनी दृष्टि लगाए रहें, जिसने उस आनन्द के लिए जो उसके सामने रखा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके क्रूस का दुःख सहा, और परमेश्वर के सिंहासन की दाहिनी ओर जा बैठा। (इब्रानियों 12:2)
क्या यीशु का उदाहरण ख्रीष्टीय सुखवाद (Hedonism) के सिद्धान्त के विपरीत है? अर्थात् प्रेम ही आनन्द का मार्ग है और उसे इसी कारण से चुना जाना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि कोई सर्वशक्तिमान की आज्ञाकारिता के लिए अनिच्छा प्रकट करे अथवा अनुग्रह का साधन बनने के विशेषाधिकार के प्रति खीझता पाया जाए या प्रतिज्ञा किए गए पुरस्कार को कमतर आँके।
इब्रानियों 12:2 स्पष्ट रीति से यह कहता हुआ प्रतीत होता है कि यीशु ने इस सिद्धान्त का विरोध नहीं किया।
इतिहास में प्रेम का सबसे महान् श्रम इसलिए सम्भव हुआ क्योंकि यीशु ने सबसे महान् कल्पनीय आनन्द का पीछा किया अर्थात् छुटकारा पाने वाले लोगों की सभा में परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठाए जाने का आनन्द: “उस आनन्द के लिए जो उसके सामने रखा था उसने क्रूस का दुःख सहा!”
ऐसा कहने में लेखक का तात्पर्य इब्रानियों 11 के सन्तों के साथ-साथ यीशु को एक और उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना है, जो उस आनन्द के लिए इतने उत्सुक और आश्वस्त हैं कि वे “पाप के क्षणिक सुख” को अस्वीकार करते हैं (इब्रानियों 11:25) और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होने के लिए दुःख भोगने को चुनते हैं।
इसलिए, यह कहना अबाइबलीय नहीं है कि गतसमनी के अन्धकारमय घण्टों में ख्रीष्ट को बनाए रखने का कम से कम एक भाग क्रूस से परे आनन्द की आशा थी। यह हमारे लिए उसके प्रेम की वास्तविकता और महानता को कम नहीं करता है, क्योंकि जिस आनन्द की उसने आशा की थी वह कई पुत्रों को महिमा में लाने का आनन्द था (इब्रानियों 2:10)।
उसका आनन्द हमारे छुटकारे में है, जो परमेश्वर की महिमा को प्रतिध्वनित करता है। हम यीशु के साथ आनन्द साझा करते हैं और परमेश्वर को महिमा मिलती है।