परमेश्वर की महिमा किए बिना परमेश्वर की खोज करना सम्भव है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी खोज से परमेश्वर का सम्मान हो, तो हमें उसके साथ संगति करने के आनन्द हेतु उसकी खोज करनी चाहिए।
इसके उदाहरण रूप में सब्त के दिन पर विचार करें। प्रभु अपने लोगों को डाँटता है क्योंकि वे परमेश्वर के पवित्र दिन में अपनी इच्छा ही पूरी कर रहे थे। “तू सब्त के कारण अपना पैर रोके रहे अर्थात् मेरे पवित्र दिन में अपनी इच्छा पूरी न करे।” परन्तु उसके कहने का अर्थ क्या है? क्या उसका अर्थ यह है कि हमें प्रभु के दिन अपने आनन्द की खोज नहीं करनी चाहिए? नहीं, क्योंकि जो अगली बात वह कहता है, वह यह है कि “सब्त को आनन्द का दिन मानो।” और 14 पद में, “तब तू यहोवा में प्रसन्न रहेगा।” इसलिए वह जिस बात की आलोचना कर रहा है वह यह है कि वे सब्त के दिन अपने स्वयं के कार्य में आनन्दित हो रहे हैं न कि अपने परमेश्वर की सुन्दरता और उस विश्राम और पवित्रता में आनन्दित हो रहे हैं, जिस उद्देश्य से यह दिन बनाया गया था।
वह उनके सुखवाद (hedonism) को नहीं डाँट रहा है। वह उसकी निर्बलता को डाँट रहा है। जैसा कि सी.एस. लूईस ने कहा था, “हम बहुत ही सहजता से प्रसन्न हो जाते हैं।” वे सांसारिक बातों में सन्तुष्ट हो गए और इस प्रकार वे प्रभु से अधिक उन बातों को सम्मान देते हैं।
इस बात पर ध्यान दें कि सब्त को “आनन्द” कहना प्रभु के पवित्र दिन को “आदरयोग्य” कहने के समानान्तर है। “यदि तू . . . सब्त को आनन्द का तथा यहोवा के पवित्र दिन को आदरयोग्य दिन माने . . .।” इसका साधारण अर्थ है कि आप उस वस्तु का सम्मान करते हैं जिसमें आप मग्न होते हैं। या आप उसकी महिमा करते हैं जिसमें आप आनन्द पाते हैं।
परमेश्वर का आनन्द उठाना और परमेश्वर की महिमा करना एक ही बात है। उसका अनन्त उद्देश्य और हमारी अनन्त प्रसन्नता आराधना के एक ही अनुभव में संयुक्त हो जाते हैं। प्रभु का दिन इसी के लिए है। वास्तव में, सम्पूर्ण जीवन इसी के लिए है।