आश्चर्यकर्म आपके जीवन को घेरे रहते हैं

श्रुति लेख (Audio Transcript)

आश्चर्यकर्म हमारे जीवन को घेरे रहते हैं, ऐसे भौतिक आश्चर्यकर्म जिन्हें हम देख सकते हैं, सुन सकते हैं, छू सकते हैं और चख सकते हैं। परन्तु उन भौतिक वरदानों तथा दृश्य आश्चर्यकर्मों का क्या अर्थ है जो हमारे जीवन में बहुतायत से होते रहते हैं? यह वह विषय है जिस पर पास्टर जॉन ने एक सन्देश प्रचार किया था, और उसका शीर्षक था, “परमेश्वर की अनोखी महिमा: हम कैसे जानते हैं कि बाइबल सत्य है,” यहाँ वे बातें हैं जो पास्टर जॉन ने कही थीं।  

यहाँ प्रकृति का एक चित्रण है: आकाश मण्डल परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है (भजन 19:1 देखें)। आकाश मण्डल परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर आपसे इस बात की अपेक्षा करता है कि आप सूर्य, चन्द्रमा, तारागणों, आकाशगंगाओं और सम्पूर्ण विश्व को देखें — और इसका निहितार्थ यह है कि छोटे कणों और उसके भीतर पाए जाने वाले संसार को — और इसके साथ ही साथ उसके बाहर के संसार को भी। वह चाहता है कि आप उस सम्पूर्ण वैभव के उस अविश्वसनीय अद्भुत जगत को देखें जिसे उसने सृजा है, और वह आपसे अपेक्षा करता है कि आप परमेश्वर की महिमा को देखें।

किन्तु इस बात पर ध्यान दीजिए। प्रकृति की महिमा परमेश्वर की महिमा नहीं है। परन्तु यह परमेश्वर की महिमा की ओर संकेत करती है। यह परमेश्वर की महिमा को प्रतिध्वनित करती है। यह परमेश्वर की महिमा की ओर ले जाती है, क्योंकि आइंस्टीन (Einstein) ने आकाश मण्डल की महिमा को देखा और फिर कलीसिया में जाकर उसने कहा: मैंने प्रचारकों से कई गुना अधिक महिमा देखी है। मुझे नहीं लगता कि वे जानते हैं कि वे क्या कह रहे हैं। जब मैंने इसको लगभग 20 वर्ष पहले पढ़ा तो मैंने सोचा कि मैं यह नहीं चाहता कि कोई भी मेरे विषय में ऐसा कुछ कहे। परमेश्वर आप ऐसा मत होने दीजिए कि जब लोग मुझे प्रचार करते हुए सुनते हैं तो कोई भी ऐसा न कहने पाए कि मैंने रात में आकाश को देखा है और मैंने पाइपर के परमेश्वर से भी बड़े परमेश्वर को देखा है। यदि आप में से कोई भी प्रचारक है, तो यह संकल्प ले लीजिए। परमेश्वर की इच्छा में, ऐसा कभी नहीं होगा। ऐसा कभी नहीं होगा। इस सब का अर्थ है कि आइंस्टीन विश्वासी नहीं था फिर भी उसने महिमा देखी। किन्तु उसने परमेश्वर की महिमा को नहीं देखा।

तो इस बात का अर्थ क्या है? आकाश परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है। मेरे विचार से इसका अर्थ है, हम अपने मस्तिष्क की आँखों से देखते हैं और हम अपने हृदय की आँखों से देखते हैं। और वे लोग जिनके पास (विश्वास से) देखने की आँखें हैं, और जब ये मस्तिष्क की आँखें देखती हैं तो वे उसके पार  देखती हैं। और बिना किसी सन्देह के आप जान जाते हैं कि परमेश्वर ने उसे बनाया है। 

क्या आपका अनुभव कभी मेरे अनुभव जैसे रहा है? मैं कलीसिया भवन को जा रहा हूँ। मैं कलीसिया जाने के लिए एक निश्चित मार्ग को नियामित रीति से लेता हूँ। और मैं पिछले 35 वर्षों में सम्भवतः इस मार्ग पर 10,000 बार चल चुका हूँ। कलीसिया भवन मेरे घर से लगभग सात मिनट की दूरी पर है, मेरे द्वार से वहाँ तक 600 पग की दूरी है। मैं इस मार्ग में लगे पेड़ों को जानता हूँ। मैं मार्ग के किनारे ऊँचे भवनों को जानता हूँ। मैं इस मार्ग की पैदल यात्रा से चिर-परिचित हूँ। मैं अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर भी वहाँ जा सकता हूँ।

प्रतिवर्ष ऐसी ऋतु भी आती हैं जब सेब के पेड़ों में फूल आ रहे होते हैं। मैं उस सप्ताहाँत को जानता हूँ। मैं उस संगीत कार्यक्रम को भी जानता हूँ जो सदैव उस सप्ताहाँत में होता है। सब कुछ सुन्दर है। और मैं कभी-कभी यह प्रयास करता हूँ कि मैं यह विश्वास न करूँ कि परमेश्वर ने इस पेड़ को बनाया है। मैं इस पेड़ को देखता हूँ, जो अस्सी फुट लम्बा है, उसकी शाखाओं का भार सम्भवतः उतना ही होगा जितना की पाँच गाड़ियों का होता है। और यह मार्च का महीना है और वहाँ अस्सी फीट ऊपर पेड़ पर छोटी कलियाँ निकल रही हैं, और इस पेड़ में कोई हृदय नहीं धड़क रहा है, जो पौधे के पोषण को हवा में अस्सी फीट ऊपर धकेल रहा है। मैं रक्त को तो समझता हूँ — हर धड़कन के साथ वह शरीर के सभी अंगों तक पहुँता है। किन्तु पेड़ों के पोषण को मैं नहीं समझता हूँ। आप इसे केशिका क्रिया या कुछ और भी कह सकते हैं। मैं कहता हूँ: यह तो आश्चर्यकर्म है।

अब, भले ही आप इसे समझाएँ या फिर इसको केशिका क्रिया जैसा कोई नाम दें। यह समझने में सहायक हो सकता है। किन्तु मेरे लिए ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं यह विश्वास करूँ कि परमेश्वर ने उस पेड़ को नहीं बनाया। आप सोच सकते हैं कि ऐसा सोचना तो बुद्धिहीनता है। मैं सोचता हूँ कि जब मैं न्याय के दिन खड़ा होऊँगा और सभी राष्ट्र इकट्ठे होंगे और मैं जीवित परमेश्वर के सामने खड़ा होऊँगा और परमेश्वर उन सभी नास्तिकों को देखेगा जो यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर ने पेड़ बनाए, वे उपहास के योग्य होंगे।

आमीन! प्रभु का धन्यवाद हो जॉन पाइपर के इस सन्देश के लिए। 

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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