Profit Gain AI Profit Method AI Crypto Core Profit

परमेश्वर विषादग्रस्त (Gloomy) अथवा उदास नहीं है

यहोवा जाति-जाति की युक्ति को निष्फल कर देता है; वह देश-देश के लोगों की योजनाओं को व्यर्थ कर देता है। यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहती है, उसके हृदय की योजनाएँ पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। (भजन 33:10-11)।

“हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में है; जो कुछ वह चाहता है, करता है” (भजन 115:3)। इस खण्ड का अर्थ यह है कि परमेश्वर के पास वह सब करने के लिए अधिकार और सामर्थ्य है जो उसको आनन्दित करता है। परमेश्वर को सम्प्रभु कहने का यही तो अर्थ है।

एक पल के लिए इसके विषय में विचार करें: यदि परमेश्वर सम्प्रभु है और वह जो चाहे कर सकता है, तो उसके किसी भी उद्देश्य को विफल नहीं किया जा सकता है। “यहोवा जाति-जाति की युक्ति को निष्फल कर देता है; वह देश-देश के लोगों की योजनाओं को व्यर्थ कर देता है। यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहती है, उसके हृदय की योजनाएँ पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती हैं” (भजन 33:10-11)।

और यदि उसके किसी भी उद्देश्य को विफल नहीं किया जा सकता है, तो वह सर्वाधिक आनन्दित प्राणी है।

यह अनन्त, ईश्वरीय आनन्द वह स्रोत है जिससे ख्रीष्टीय (सुखवादी) पीता है और अधिक गहराई से पीने की लालसा करता है।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि तब क्या होता यदि संसार पर राज्य करने वाला परमेश्वर आनन्दित न होता? तब क्या होगा यदि परमेश्वर बड़बड़ाने, चिड़चिड़ाने तथा अवसादग्रस्त हो जाए, जैसे मानो कि वह किसी कहानी का खलनायक हो? तब क्या होगा यदि परमेश्वर निराश और मायूस और विषादग्रस्त और अप्रसन्न और असन्तुष्ट और निरुत्साहित होता?

क्या हम दाऊद के साथ मिलकर कह सकते हैं, “हे परमेश्वर, तू ही मेरा परमेश्वर है; मैं तुझे यत्न से ढूँढ़ूँगा; सूखी और प्यासी, हाँ, निर्जल भूमि पर मेरा प्राण तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है” (भजन 63:1)? मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता है।

तब हम सबका परमेश्वर से सम्बन्ध मानो उन छोटे बच्चों के समान होता जिनके पिता कुंठित, विषादग्रस्त, निराश एवं असन्तुष्ट हैं। वे उसका आनन्द नहीं उठा सकते हैं। वे केवल प्रयास कर सकते हैं कि वे उसे तंग न करें, या उससे थोड़ी सी कृपा पाने के लिए उसके लिए कार्य करने का प्रयास कर सकते हैं।

परन्तु परमेश्वर ऐसा नहीं है। वह कभी भी कुंठा या निरुत्साहित बातों से ग्रसित नहीं होता है। और जैसा कि भजन 147:11 कहता है, वह उनमें  “आनन्दित होता है . . . जो उसकी करुणा की आस लगाए रहते हैं।” तो ख्रीष्टीय सुखवाद का लक्ष्य इस परमेश्वर को अनदेखा करना नहीं है, उससे भागना नहीं है, या बिना शोर किए दबे पाँव उसके कमरे से होकर निकलना नहीं है, कि कहीं ऐसा न हो कि उसका विषाद, क्रोध में न बदल जाए। नहीं, हमारा लक्ष्य है कि हम उसके करुणामय प्रेम में आशा रखें। उसकी ओर दौड़ें। परमेश्वर में आनन्दित हों, परमेश्वर में हर्षित हों, उसकी संगति और उपकार को सँजोएँ और उसका आनन्द लें।

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 377
Album Cover
: / :

Special Offer!

ESV Concise Study Bible

Get the ESV Concise Study Bible for a contribution of only 500 rupees!

Get your Bible