पूर्ण-सन्तुष्टिदायक पात्र
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

यहोवा में मग्न रह, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। (भजन 37:4)

आनन्द की प्राप्ति की खोज करना कोई विकल्प नहीं वरन् (भजनों में) यह तो एक आज्ञा है : “यहोवा में मग्न रह, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा” (भजन 37:4)।

भजनकारों ने यही करने का प्रयास किया था: “जैसे हरिणी नदी के जल के लिए हाँफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिए हाँफता हूँ,  मैं परमेश्वर के लिए, हाँ, जीवित परमेश्वर के लिए प्यासा हूँ” (भजन 42:1-2)। “हे परमेश्वर, तू ही मेरा परमेश्वर है; मैं तुझे यत्न से ढूँढ़ूँगा सूखी और प्यासी, हाँ, निर्जल भूमि पर मेरा प्राण तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है” (भजन 63:1)।

जब भजनकार कहता है कि मनुष्य “तेरे भवन की भरपूरी से तृप्त होते हैं, और तू उन्हें अपने आनन्द की नदी में से पिलाता है” (भजन 36:8) इसमें प्यास के मूलभाव को सन्तुष्ट करने का पूरक है।

मैंने यह पाया है कि परमेश्वर की भलाई, जो कि हमारी आराधना की मूल नींव है, यह कोई ऐसा विचार नहीं है जिसे हम केवल नाममात्र के लिए ऊपरी मन से आदर देते हैं। नहीं! हमें तो इसमें आनन्दित होना चाहिए: “चख कर देखो कि यहोवा कैसा भला है!” (भजन 34:8) चखो, चखो! और देखो।

“तेरे वचन मुझको कितने मीठे लगते हैं, हाँ, मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं!” (भजन 119:103)

जैसे सी. एस. लुईस कहते हैं, भजनों में परमेश्वर “पूर्ण-सन्तुष्टिदायक पात्र है।” उसके लोग बिना लज्जित हुए उसके असीम आनन्द के लिए, जिसे वे परमेश्वर में पाते हैं उसकी आराधना करते हैं (भजन 43:4)। वह पूर्ण तथा सर्वदा के सुख का स्रोत है: “तेरी उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी है; तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है” (भजन 16:11)।

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