मैं गीत गाकर परमेश्वर के नाम की स्तुति करूँगा, और धन्यवाद देकर उसकी बड़ाई करूँगा। (भजन 69:30)
आवर्धन या बड़ाई दो प्रकार की होती हैं: सूक्ष्मदर्शी (microscope) द्वारा आवर्धन करना और दूरबीन (telescope) द्वारा आवर्धन करना। पहला आवर्धन छोटी वस्तु को वास्तविकता से अधिक बड़ा दिखाता है। दूसरी आवर्धन बड़ी वस्तु को उतना बड़ा दिखाना आरम्भ करता है जितना कि वह वास्तव में है।
जब दाऊद कहता है, “मैं धन्यवाद देकर परमेश्वर की बड़ाई करूँगा,” तो उसका अर्थ यह नहीं है कि, “मैं एक छोटे परमेश्वर को वास्तविकता से अधिक बड़ा दिखाऊँगा।” उसका अर्थ है, “मैं परमेश्वर को उतना बड़ा दिखाना आरम्भ करूँगा जितना कि वह वास्तव में है।”
हमें सूक्ष्मदर्शी होने के लिए नहीं बुलाया गया है। हमें दूरबीन होने के लिए बुलाया गया है। ख्रीष्टियों को ऐसे ठग होने के लिए नहीं बुलाया गया है जो अपने उत्पाद को वास्तविकता से अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके प्रतिद्वन्द्वी का उत्पाद अधिक उत्तम है। परमेश्वर से उत्तम न कोई वस्तु है और न कोई जन है। और इसलिए परमेश्वर से प्रेम करने वालों के लिए बुलाहट यह है कि हम परमेश्वर की महानता को उतना ही महान दिखाएँ जितना कि वह वास्तव में महान् है।
हम इसीलिए अस्तित्व में हैं, हम इसीलिए बचाए गए थे, जैसा कि पतरस हमें 1 पतरस 2:9 में बताता है, “तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजकों का समाज, एक पवित्र प्रजा, और परमेश्वर की निज सम्पत्ति हो, जिस से तुम उसके महान गुणों को प्रकट करो जिसने तुम्हें अन्धकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है।”
ख्रीष्टीय जन के सम्पूर्ण कर्तव्य को ऐसे सारांशित किया जा सकता है: इस रीति से आभास करें, सोचें, और कार्य करें कि परमेश्वर को उतना महान् दिखाए जितना कि वह वास्तव में है। संसार के लिए परमेश्वर की महिमा के असीम तारामय धन की एक दूरबीन बनें।
एक ख्रीष्टीय द्वारा परमेश्वर की बड़ाई करने का अर्थ यही है। किन्तु जिसे आपने नहीं देखा है या जिसे आप शीघ्र ही भूल जाते हैं, उसकी आप बड़ाई नहीं कर सकते हैं।
इसलिए, हमारा प्रथम कार्य है परमेश्वर की महानता और भलाई को देखना और उसे स्मरण रखना। इसलिए हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, “मेरे मन की आँखें ज्योतिर्मय कर” (इफिसियों 1:18), और हम अपने प्राण को उपदेश देते हैं, “हे मेरे मन, उसके किसी उपकार को न भूल!” (भजन 103:2)।