अपर्याप्त रूप से सुखवादी
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

“अपने लिए पृथ्वी पर धन-संचय मत करो, जहाँ कीड़ा और जंग नष्ट करते हैं और जहाँ चोर सेंध लगाकर चोरी करते हैं। परन्तु अपने लिए स्वर्ग में धन-संचय करो, जहाँ न कीड़ा और न जंग नष्ट करते हैं और न ही चोर सेंध लगाकर चोरी करते हैं।” (मत्ती 6:19-20)

व्यापार केन्द्रों की छतों से इस सन्देश को चिल्ला कर बोले जाने की आवश्यकता है: हे सांसारिक मनुष्य, तुम पर्याप्त रूप से सुखवादी नहीं हो!

आनन्द की उस छोटे से 2% उपज से जिसे मुद्रास्फीति के कीट-पतंगे और मृत्यु की जंग खा जाती है सन्तुष्ट होना छोड़ दो। स्वर्ग की विश्वसनीये, उच्च-उपज, ईश्वरीय रूप से बीमाकृत प्रतिभूतियों में निवेश करो।

भौतिक सुख-सुविधाओं और सुरक्षा और रोमांच के लिए जीवन समर्पित करना अपने धन को चूहे के बिल में डालने के समान है, अर्थात् उसे नष्ट करना है। परन्तु प्रेम के श्रम में जीवन का निवेश करने से ऐसे आनन्द का लाभाँश मिलता है जो अद्वितीय और अन्तहीन होता है:

“अपनी सम्पत्ति बेचकर दान कर दो। [और इस प्रकार से] अपने लिए ऐसे बटुए बनाओ जो फटते नहीं, अर्थात् समाप्त न होने वाल धन स्वर्ग में इकट्ठा करो, जहाँ न तो चोर उसके निकट आता है और न उसे कीड़ा बिगाड़ता है” (लूका 12:33)।

यह सन्देश ही शुभ समाचार है: ख्रीष्ट के पास आओ, जिसकी उपस्थिति में सदा के लिए हर्ष और आनन्द की परिपूर्णता है। ख्रीष्टीय सुखवाद के श्रम में हमारे साथ सम्मिलित हो जाइए। क्योंकि प्रभु ने कहा है: विलासिता में रहने से प्रेम करना अधिक धन्य है! यह अभी धन्य है और सदा के लिए भी होगा।

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