“आराधना” वह शब्द है जिसका उपयोग हम हृदय, बुद्धि और देह के उन सब कार्यों को सम्मिलित करने के लिए करते हैं जो उद्देश्यपूर्वक परमेश्वर के असीम मूल्य को व्यक्त करते हैं। इसी के लिए तो हम सृजे गए हैं। यह कलीसिया में गीत गाना हो सकता है। यह रसोई को स्वच्छ करना भी हो सकता है।
जब आप आराधना के विषय में विचार करते हैं तो केवल आराधना सभा के विषय में ही विचार न करें। आराधना को आराधना सभा तक सीमित करना तो एक बड़ा प्रतिबन्ध है जो कि बाइबल में नहीं मिलता है। हमारे सम्पूर्ण जीवन को ही आराधना होना चाहिए।
उदाहरण के लिए सुबह के भोजन को ही ले लीजिए। 1 कुरिन्थियों 10:31 कहता है, “चाहे तुम खाओ या पीओ या जो कुछ भी करो, सब परमेश्वर की महिमा के लिए करो।” अब खाने और पीने से अधिक कोई आधारभूत बात नहीं है। मनुष्य के लिए खाने और पीने से अधिक वास्तविक या साधारण बात और क्या हो सकती है? और पौलुस कहता है, वास्तव में तुम्हारे सम्पूर्ण खाने और पीने को आराधना होना चाहिए।
या यौन सम्बन्ध की बात को ले लीजिए। पौलुस कहता है कि आराधना परस्त्रीगमन का समाधान है।
व्यभिचार से भागो। अन्य सारे पाप जो मनुष्य करता है देह के बाहर होते हैं, परन्तु व्यभिचारी तो अपनी देह के विरुद्ध पाप करता है। क्या तुम नहीं जानते कि तुम में से प्रत्येक की देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है, जो तुम में है और जिसे तुमने परमेश्वर से पाया है, और कि तुम अपने नहीं हो? क्योंकि तुम मूल्य देकर खरीदे गए हो: इसलिए अपने शरीर के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो। (1 कुरिन्थियों 6:18-20)
अर्थात्, जिस रीति से आप यौन के क्षेत्र में व्यवहार करते हैं उसके द्वारा अपनी देह से आराधना करें।
या अन्तिम उदाहरण के लिए मृत्यु को ले लीजिए। हम अपने शरीर में मृत्यु का अनुभव करेंगे। वास्तव में, वह इस पृथ्वी पर हमारी अन्तिम क्रिया होगी। शरीर विदाई लेता है। शरीर की उस अन्तिम क्रिया के द्वारा हम कैसे आराधना करेंगे? इसका उत्तर हम फिलिप्पियों 1:20-21 में देखते हैं। पौलुस कहता है कि उसकी आशा है कि मृत्यु के द्वारा उसके शरीर में ख्रीष्ट की महिमा हो — अर्थात् उसकी आराधना हो, और यह प्रकट हो कि वह योग्य है। फिर वह आगे कहता है कि “मेरे लिए . . . मरना लाभ है।” हम मृत्यु को लाभ समझकर मरने के द्वारा ख्रीष्ट के अनन्त मूल्य को व्यक्त करते हैं।
आपके पास शरीर है। परन्तु यह आपका नहीं है। “तुम मूल्य देकर खरीदे गए हो: इसलिए अपने शरीर के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।”
आप सदैव एक मन्दिर में हैं। इसीलिए सदैव आराधना करिए।