
सताव पवित्रीकरण हेतु सहायक है।
हमारे जीवन में सताव और दुःख सिर्फ हमें दुःखी करने या पीड़ा में से होकर जाने
कई लोगों के मन में ख्रीष्टीय जीवन को लेकर एक त्रुटिपूर्ण धारणा यह है कि ये एक सताव-मुक्त जीवन है और किसी के जीवन में सताव का होना उसके विश्वास में कमी को दर्शाता है। परन्तु सत्य तो यह है कि सताव और क्लेश तो ख्रीष्टीय जीवन का एक अभिन्न भाग है। इसलिए इस लेख के द्वारा हम ख्रीष्टीय जीवन में सताव के तीन कारणों पर ध्यान देंगे –
1. यीशु के नाम के कारण – पहाड़ी उपदेश में यीशु ने कहा था कि जिस प्रकार नबियों को सताया गया था, वैसे ही हमें भी सताव का सामना करना पड़ेगा। ऐसे लोगों को यीशु धन्य कहता है क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्ही का है। उसने ये भी कहा कि सताव के मध्य हमें आनन्दित होना चाहिए, क्योंकि स्वर्ग में हमें एक बड़ा प्रतिफल मिलेगा (मत्ती 5:10-12)। यीशु ने कहा कि संसार उससे घृणा करता है, और उसके नाम के कारण संसार हम से भी घृणा करता है (यूहन्ना 15:18)। यह दर्शाता है कि हमारे जीवन में सताव का आना एक स्वाभाविक बात है
2. आत्मिक परिपक्वता के कारण – प्रेरित पौलुस सताव के विषय में लिखते हैं कि यह हमें परिपक्व बनाता है। क्लेश और सताव हमारे जीवन में धैर्य, खरा चरित्र और आशा को उत्पन्न करता है (रोमियों 5:3-4)। याकूब भी अपनी पत्री में लिखता है कि हमारे जीवनों में विभिन्न परीक्षाओं का आना हमें परिपक्व बनाता है। ये हमारे अन्दर धीरज को उत्पन्न करता है जो अन्ततः परिपक्वता लेकर आता है (याकूब 1:2-4)। हमें परिपक्व बनाने के लिए यह परमेश्वर के द्वारा ठहराया गया साधन है।
3. ख्रीष्ट का अनुकरण करने के कारण – यीशु ख्रीष्ट हमारा आदर्श है और हमें उसके पदचिन्हों पर चलने के लिए बुलाया गया है। पतरस लिखता है कि यीशु निष्पाप होते हुए भी हमारे लिए सताव को सहा और दुःख उठाया। उन विश्वासियों को जो सताव से होकर जा रहे थे, उन्हे पतरस इन बातों के द्वारा प्रोत्साहित कर रहा था कि उन्हे धर्य के साथ दुःख उठाना होगा क्योंकि यीशु के पदचिन्हों पर चलने का अर्थ यही है (1 पतरस 2:20-23)।
अतः इन कारणों के आधार पर हम देख सकते हैं कि मसीह जीवन सताव मुक्त जीवन नहीं है। यीशु के चेले होने के कारण हमें प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर उसके पीछे चलना है (लुका 14:27)। इसलिए, जब जीवन में सताव आए, तो हम उस स्वर्गीय प्रतिफल को स्मरण करें और सताव को आनन्द के साथ सहें।
हमारे जीवन में सताव और दुःख सिर्फ हमें दुःखी करने या पीड़ा में से होकर जाने
बहुत सारे ख्रीष्टीय हुए हैं, जिनको केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया, क्योंकि वे
“भले ही तुम्हें अभी कुछ समय के लिए विभिन्न परीक्षाओं द्वारा दुख उठाना पड़ा हो कि
हम सब के सामने जो प्रश्न है, वह यह है कि: क्या हम उन “बहुतों” में
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