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सेवक की नाईं स्वामी

… जिससे कि आने वाले युगों में वह अपनी उस कृपा से जो ख्रीष्ट यीशु में हम पर है अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। (इफिसियों 2:7)

मेरे लिए, बाइबल में ख्रीष्ट के द्वितीय आगमन की सबसे आश्चर्यजनक छवि लूका 12:35–37 में है, जो एक विवाह भोज से स्वामी की वापसी को इस प्रकार चित्रित्र करती है: 

“तुम्हारी कमरें कसी रहें और तुम्हारे दीपक जलते रहें। उन मनुष्यों के समान बनो जो अपने स्वामी की, जब वह विवाह के भोज से लौटकर आता हो, बाट जोहते रहते हैं कि जब वह आकर द्वार खटखटाए तो तुरन्त खोल दें। धन्य हैं वे दास जिन्हें स्वामी आकर सतर्क पाए; मैं तुमसे सच सच कहता हूँ कि वह अपनी कमर कसकर उनकी सेवा करेगा और उन्हें भोजन करने बैठाएगा और स्वयं आकर परोसेगा।”

ये तो निश्चित है कि हमें सेवक कहा गया है — और इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि हमें ठीक वही करना है जो हमसे कहा गया है। किन्तु इस चित्र का आश्चर्य यह है कि “स्वामी” पहल करके सेवा करता है। हो सकता है कि हमने यीशु की इस पृथ्वी पर की सेवकाई के समय में इस बात की अपेक्षा की होगी, विशेषकर जब उसने कहा, “मनुष्य का पुत्र सेवा कराने नहीं किन्तु सेवा करने तथा बहुतों की फिरौती में अपने प्राण देने आया” (मरकुस 10:45)। किन्तु लूका 12:35–37 यीशु के द्वितीय आगमन का चित्र है जिसमें मनुष्य का पुत्र अपने पिता की तेजोमय महिमा में आता है “अपने सामर्थी स्वर्गदूतों के साथ धधकती आग में प्रकट होगा” जैसा कि 2 थिस्सलुनीकियों 1:7-8 कहता है। द्वितीय आगमन के समय में क्यों यीशु को एक भोजन परोसने वाले के समान चित्रित किया गया है?

क्योंकि उसकी महिमा का मुख्य केन्द्र अनुग्रह की ऐसी परिपूर्णता है जो आवश्यकता में पड़े लोगों के प्रति दयालुता में उमड़ती है। इसलिए इफिसियों 2:7 कहता है कि उसका लक्ष्य है “आने वाले युगों में अपनी उस कृपा से जो ख्रीष्ट यीशु में हम पर है अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।”

हमारे परमेश्वर की महानता क्या है? इस संसार में उसका अनोखापन क्या है? यशायाह इसका उत्तर देता है: “ क्योंकि प्राचीनकाल ही से न किसी ने सुना, न ही कानों तक उसकी चर्चा पहुँची और न आँखों से किसी ने तुझे छोड़ ऐसे परमेश्वर को देखा जो अपनी बाट जोहने वालों के लिए कार्य करता हो” (यशायाह 64:4)। इसके समान कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है। वह अपने चिर-आश्रित, प्रसन्न लोगों का अपार दाता होने की भूमिका को कभी नहीं त्यागता है।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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