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हम कुछ नहीं कर सकते हैं

“मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5)।

कल्पना कीजिए कि आप पूर्णतः लकवाग्रस्त हैं और बात करने के अतिरिक्त आप अपने लिए कुछ भी नहीं कर सकते हैं। और कल्पना कीजिए कि एक बलवान और भरोसेमन्द मित्र ने आपके साथ रहने और जो कुछ भी आप चाहते हैं उसे करने की प्रतिज्ञा की है। यदि एक अपरिचित आप से मिलने आए तो आप उसके सामने इस मित्र की महिमा कैसे करेंगे?

क्या आप बिस्तर से बाहर निकलने और उसे उठाने का प्रयास करने के द्वारा उसकी उदारता और सामर्थ्य की प्रशंसा करेंगे? नहीं! आप कहेंगे, “मित्र, कृपया मुझे उठाइए, और आप एक तकिया मेरे पीछे लगाइए ताकि मैं अपने अतिथि की ओर देख सकूँ? और कृपया करके क्या आप मेरा चश्मा भी मुझे पहना देंगे?”  

तब आपका अतिथि आपके निवेदनों से समझ लेगा कि आप असहाय हैं और आपका मित्र बलवान और दयालु है। आप अपने मित्र की महिमा करते हैं उस पर निर्भर रहने, और उससे सहायता माँगने तथा उस पर भरोसा करने के द्वारा। 

यूहन्ना 15:5 में, यीशु कहता है, “क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” तो वास्तव में हम लकवाग्रस्त हैं। बिना मसीह के, हम मसीह-को-ऊँचा उठाने वाली किसी भी भलाई के कार्य में समर्थ नहीं हैं। जैसा कि पौलुस रोमियों 7:18 में कहता है, “मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कुछ भी भला वास नहीं करता”। 

लेकिन यूहन्ना 15:5 यह भी कहता है कि परमेश्वर हम से मसीह-को-अत्यन्त ऊँचा उठाने वाली भलाई की इच्छा रखता है, अर्थात फल लाना: “जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है”। जैसा कि हमारा बलवान और भरोसेमन्द मित्र है — “मैंने तुम्हें मित्र कहा है” (यूहन्ना 15:15) – वह हमारे लिए और हमारे द्वारा वह कार्य करने की प्रतिज्ञा करता है, जो हम स्वयं के लिए नहीं कर सकते हैं।

तो हम उसकी महिमा कैसे करते हैं? यूहन्ना 15:7 में यीशु इसका उत्तर देते हैं: “यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरे वचन तुम में बने रहें तो जो चाहो माँगो, और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।” हम प्रार्थना करते हैं ! हम परमेश्वर से अपने लिए विनती करते हैं कि मसीह के द्वारा हमारे लिए वह कार्य करे जो हम स्वयं के लिए नहीं कर सकते हैं – अर्थात फल लाना।

यूहन्ना 15:8 हमें परिणाम के विषय में बताता है कि: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत फल लाओ।”

तो प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर की महिमा कैसे होती है? प्रार्थना एक स्पष्ट स्वीकृति है कि मसीह के बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं। और प्रार्थना स्वयं से परमेश्वर की ओर मुड़ना है इस भरोसे के साथ कि वह हमारी आवश्यकता के अनुसार हमें सहायता प्रदान करेगा।               

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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