
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन
संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org
उन निरंकुश लोगों के विषय में क्या कहें जिन्होंने पौलुस को मार डालने तक न खाने की शपथ खाई थी?
हम उनके विषय में प्रेरितों के काम 23:12 में पढ़ते हैं, “जब दिन हुआ तो यहूदियों ने षड्यन्त्र रचा और यह कह कर शपथ खाई कि जब तक पौलुस को मार न डालें तब तक न तो खाएंगे और न पीएंगे।” परन्तु ऐसा नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि उससे पहले कई घटनाएँ घटित हुईं।
- एक बालक ने उस षड्यन्त्र को सुन लिया।
- बालक पौलुस की बहन का पुत्र था।
- बालक में पौलुस को पहरा देने वाले रोमी सूबेदार के पास जाने का साहस था।
- सूबेदार ने उस बालक की बातों को गम्भीरतापूर्वक लिया और उसे सेनापति के पास ले गया।
- सेनापति ने उस बालक पर विश्वास किया और पौलुस को सुरक्षित भेजने के लिए “दो सौ सैनिक, सत्तर घुड़सवार तथा दो सौ भालैत” तैयार करवाया।
इन में से घटित प्रत्येक घटना की सम्भावना बहुत ही कम थी। भले ही यह विचित्र है, परन्तु यही हुआ था।
घात लगाकर बैठे उन निरंकुश व्यक्तियों ने किस बात को अनदेखा कर दिया था? वे अपने षडयन्त्र रचने से ठीक पहले पौलुस के साथ जो हुआ था, उस पर विचार करने में असफल रहे। प्रभु ने बन्दीगृह में पौलुस को दर्शन दिया और कहा, “साहस रख, क्योंकि जिस प्रकार तू ने यरूशलेम में दृढ़तापूर्वक मेरी साक्षी दी है उसी प्रकार तुझे रोम में भी साक्षी देनी होगी” (प्रेरितों के काम 23:11)।
ख्रीष्ट ने कहा कि पौलुस रोम जाएगा। और इस योजना को बदला नहीं जा सकता था। कोई भी षड्यन्त्र ख्रीष्ट की प्रतिज्ञा के विरोध में खड़ा नहीं हो सकता है। जब तक वह रोम न पहुँच जाए, तब तक पौलुस अमर था। वहाँ पर उसे अन्तिम साक्षी देना अभी शेष था। और ख्रीष्ट इस बात को सुनिश्चित करेगा कि पौलुस वहाँ साक्षी देगा।
आपको भी अपनी अन्तिम साक्षी देनी है। और जब तक आप इसे दे नहीं देते हैं तब तक आप अमर हैं।