अपने हृदय को कठोर न करो
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

[परमेश्वर] ने किन से शपथ खाई कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश नहीं करने पाओगे? क्या उनसे नहीं जिन्होंने आज्ञा न मानी? अतः हम देखते हैं कि अविश्वास के कारण ही वे प्रवेश न करने पाए। (इब्रानियों 3:18-19)

यद्यपि इस्राएल के लोगों ने लाल समुद्र के जल को विभाजित होते देखा और समुद्र के मध्य सूखी भूमी से होकर चले, किन्तु जैसे ही उन्हें प्यास लगी, उनके हृदय परमेश्वर के विरुद्ध कठोर हुए और उन्होंने अपनी देखभाल करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा न किया। वे उसके विरुद्ध चिल्ला उठे और उन्होंने कहा कि मिस्र में जीवन अधिक अच्छा था।

इब्रानियों की पुस्तक इसी बात की रोकथाम करने के लिए लिखी गई थी। स्वयं को ख्रीष्टीय कहने वाले कितने ही लोग परमेश्वर के साथ प्रारम्भ तो करते हैं। वे सुनते हैं कि उनके पाप क्षमा हो सकते हैं  जिससे कि वे नरक से बचकर स्वर्ग जा सकते हैं। और वे कहते हैं: “मेरे पास खोने के लिए है ही क्या? मैं विश्वास करूँगा।”

परन्तु फिर एक सप्ताह में या एक महीने में या एक वर्ष में या दस वर्ष में, परीक्षा आती है—अर्थात् मरूस्थल में पानी न होने का समय। जब मन्ना से मन भर जाता है। और धीरे से, मिस्र के क्षणिक सुखों के लिए बढ़ती हुई लालसा होती है, जैसा कि गिनती 11:5-6 कहता है, “हमें मिस्र की वे मछलियाँ याद हैं जो हम मुफ्त में खाया करते थे और खीरे और तरबूज और गन्दने और प्याज और लहसुन भी, परन्तु अब तो हमारा जी ऊब गया है, मन्ना के सिवाय हमें यहाँ और कुछ दिखाई नहीं देता।”

यह एक ऐसी भयावह स्थिति है—जब आप यह अनुभूति करते हैं कि आपको ख्रीष्ट और उसके वचन और प्रार्थना और आराधना और सुसमाचार प्रचार-प्रसार और परमेश्वर की महिमा के लिए जीने में अब रुचि नहीं रह गई है। और जब आत्मा की बातों से अधिक इस संसार के सभी क्षणिक सुख आपको आकर्षक प्रतीत होते हैं।

यदि यह आपकी स्थिति है, तो मैं आप से इस स्थल में बोल रहे पवित्र आत्मा को सुनने का निवेदन करता हूँ। “अविश्वास के कारण ही वे प्रवेश न करने पाए!” परमेश्वर के वचन पर ध्यान दें। अपने हृदय को कठोर न करें। पाप के छल के प्रति जागरूक हों। उस यीशु पर अपना ध्यान लगाएँ, जो हमारे महान अंगीकार का प्रेरित और महायाजक है, और उस पर अपना भरोसा और अपनी आशा बनाए रखें।

और यदि आपने परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को प्रारम्भ भी नहीं किया है, तो अपनी आशा उस पर लगाएँ। पाप से और आत्मनिर्भरता से फिरें और अपने भरोसे को उस महान उद्धारकर्ता पर लगाएँ। ये बातें इसलिए लिखी गई हैं कि आप विश्वास करें और धीरज रखें, और जीवित रहें।

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