पौलुस ने फिलिप्पियों के लोगों को बताया कि ख्रीष्ट के सुसमाचार के योग्य आचरण का अर्थ है शत्रुओं के सामने भयभीत न होना। और फिर उसने निडरता का तर्क दिया।
तर्क यह है: परमेश्वर ने तुम्हें दो वरदान दिए हैं, केवल एक नहीं — विश्वास और कष्ट सहना। 29 पद यही कहता है। “क्योंकि ख्रीष्ट के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ है कि तुम उस पर केवल विश्वास ही न करो वरन् उसके लिए कष्ट भी सहो।” तुम पर अनुग्रह हुआ है कि तुम विश्वास करो, और तुम पर अनुग्रह हुआ है कि कष्ट सहो।
इस सन्दर्भ में उसका अर्थ है: कष्टों के मध्य में तुम्हारा विश्वास और तुम्हारे कष्ट दोनों परमेश्वर की ओर से वरदान हैं। जब पौलुस कहता है कि अपने विरोधियों से भयभीत न हो, तो वे क्यों न भयभीत हों इसके लिए उसके पास दो कारण हैं:
- पहला कारण यह है कि विरोधी लोग परमेश्वर के हाथ में हैं। उनका विद्रोह करना परमेश्वर की ओर से वरदान है। वह उन पर शासन करता है। पद 29 में यह पहला बिन्दु है।
- और भयभीत न होने का दूसरा कारण है कि आपका भयभीत न होना, अर्थात् आपका विश्वास भी, परमेश्वर के हाथ में है। यह भी वरदान है। यह पद 29 का दूसरा बिन्दु है।
इसलिए संकट के समय भयभीत न होने का तर्क यह दोहरा सत्य है: आपका संकट और उस संकट के समय में आपका विश्वास दोनों ही परमेश्वर के वरदान हैं।
इस आचरण को “ख्रीष्ट के सुसमाचार के योग्य होना” क्यों कहा जाता है? क्योंकि सुसमाचार यह शुभ सन्देश है कि ख्रीष्ट के वाचा के लहू ने अचूक रीति से अपने सभी लोगों के लिए हमें विश्वास देने और हमारे विरोधियों पर शासन करने के लिए परमेश्वर के सम्प्रभु कार्य को प्राप्त किया है — सर्वदा हमारे अनन्त भले के लिए। सुसमाचार ने यही तो अर्जित किया है। इसलिए, उस प्रकार से जीवन जीना सुसमाचार की सामर्थ्य और भलाई को दिखाता है।
इसलिए, भयभीत मत हों। परमेश्वर ने आपके विरोधियों को जितनी अनुमति दी है उससे अधिक वे कुछ नहीं कर सकते हैं। और वह आपको आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त विश्वास प्रदान करेगा। इन प्रतिज्ञाओं को लहू के द्वारा मोल लिया गया है और इन पर छाप लगाई गई है। ये सुसमाचार की प्रतिज्ञाएँ हैं।