“मेरे लिए उसके किए गए सभी उपकारों के बदले में परमेश्वर को देने” की भाषा मुझे घबरा देती है। लौटाने का अर्थ बड़ी ही सरलता से यह लगाया जा सकता है कि अनुग्रह एक बन्धक ऋण के समान है। यह वास्तव में उदार तो है, किन्तु आपको इसे लौटाना ही होगा।
पौलुस ने प्रेरितों के काम 17:25 में कहा, “न ही मनुष्यों के हाथों से [परमेश्वर की] सेवा-टहल होती है, मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो, क्योंकि वह स्वयं सब को जीवन, श्वास और सब कुछ प्रदान करता है।” दूसरे शब्दों में आप परमेश्वर को ऐसा कुछ नहीं दे सकते हैं और न ही परमेश्वर के लिए कुछ कर सकते हैं जिसे पहले उसने आपको न दिया हो और उसने आपके लिए न किया हो।
आप इसको फिर से 1 कुरिन्थियों 15:10 में देखते हैं, “फिर भी परमेश्वर के अनुग्रह से मैं अब जो हूँ सो हूँ। मेरे प्रति उसका अनुग्रह व्यर्थ नहीं ठहरा, परन्तु मैंने उन सब से बढ़कर परिश्रम किया, फिर भी मैंने नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह ने मेरे साथ मिलकर किया।” इसलिए हमारा कोई भी कार्य परमेश्वर के लिए एक भुगतान नहीं हो सकता है, क्योंकि वह कार्य भी परमेश्वर की ओर से एक और उपहार है। परमेश्वर के लिए किए हुए प्रत्येक कार्य के साथ हम अनुग्रह के और अधिक ऋणी होते जाते हैं।
इसलिए भजन 116 में जो बात हमें मन्नतों को पूरी करने को ऋण चुकाने के रूप में समझे जाने से रोकती है वह यह है कि यह “भुगतान” वास्तव में एक साधारण भुगतान नहीं है, किन्तु प्राप्त करने का एक और कार्य है जो परमेश्वर के बने रहने वाले अनुग्रह की बड़ाई करता है। यह हमारी साधन-सम्पन्नता की बड़ाई नहीं करता है।
स्वयं द्वारा पूछे गए प्रश्न, “यहोवा ने मेरे लिए जितने उपकार किए हैं मैं उनके बदले में उसे क्या दूँ?” के उत्तर में भजनकार कहता है, “मैं उद्धार का कटोरा उठा कर, यहोवा से प्रार्थना करूँगा।” दूसरे शब्दों में, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा कि वह मेरे कटोरे को भरे। प्रभु को लौटाने का अर्थ है प्रभु से प्राप्त करते रहना जिससे कि प्रभु की कभी समाप्त न होने वाली भलाई की बड़ाई होती जाए।
उद्धार के कटोरे को उठाने का अर्थ है प्रभु के सन्तुष्टिदायक उद्धार को हाथ में लेकर पीने के पश्चात् और अधिक पाने की अपेक्षा करना। हम इसे अगले वाक्यांश के कारण जानते हैं: “मैं . . . यहोवा से प्रार्थना करूँगा।” मैं और अधिक सहायता के लिए प्रार्थना करूँगा। मेरी प्रार्थना का अनुग्रहपूर्ण रीति से उत्तर देने के लिए मैं परमेश्वर को क्या लौटाऊँगा? उत्तर: मैं फिर से प्रार्थना करूँगा। परमेश्वर को मैं यह स्तुति और भेंट दूँगा कि उसको कभी भी मेरी आवश्यकता नहीं है, परन्तु जब भी मुझे उसकी आवश्यकता होती है (जो मुझे सर्वदा होती है) वह उपहारों को मुझ पर उण्डेलता है।
तब भजनकार तीसरी बात को कहता है, “मैं यहोवा के लिए अपनी मन्नतें अवश्य पूरी करूँगा” परन्तु वे कैसे पूरी की जाएँगी? वे उद्धार के कटोरे को उठाने के द्वारा और प्रभु से प्रार्थना करने के द्वारा पूरी की जाएँगी। अर्थात्, वे इस प्रतिज्ञा के द्वारा पूरी की जाएँगी कि और अनुग्रह — सर्व-पर्याप्त अनुग्रह — सर्वदा आता रहता है।