एक फरीसी के घर पर एक महिला यीशु के पास रोते हुए उसके पैरों को धोने के लिए आती है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि उसने लज्जा का आभास किया होगा जब शिमौन ने आँखों ही आँखों में वहाँ उपस्थित सभी लोगों को बताया कि यह स्त्री एक पापिन है और यीशु को उसे अपने पैरों को नहीं छूने देना चाहिए।
यह सत्य है कि वह एक पापिन थी। उसकी लज्जा का एक ठोस कारण भी था। परन्तु अधिक समय के लिए ऐसा नहीं होगा।
यीशु ने कहा, “तेरे पाप क्षमा कर दिए गए हैं” (लूका 7:48)। और जब सभी अतिथि इस विषय पर आपस में बड़बड़ाने लगे, तो उसने उसके विश्वास को यह कहने के द्वारा दृढ़ किया, “तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है, कुशल से चली जा” (लूका 7:50)।
यीशु ने इस अपंग बना देने वाली लज्जा से लड़ने में उसकी सहायता कैसे की? उसने उसे एक प्रतिज्ञा दी: “तेरे पाप क्षमा कर दिए गए हैं! तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है। तेरा भविष्य कुशल है। ” उसने इस बात को घोषित किया कि भूतकाल की क्षमा अब भविष्य की शांति को लाएगी।
तो, उसे परमेश्वर के भविष्य-के-अनुग्रह पर भरोसा करना था, जिसकी जड़ें यीशु के क्षमा करने वाले कार्य और स्वतन्त्र करने वाले वचन की सामर्थ्य में थी। यही वह ढंग है जिसके द्वारा हमें अपनी वास्तविक लज्जा — न कि झूठी लज्जा — के प्रभाव से लड़ना चाहिए, ऐसी लज्जा जिसका आभास हमें वास्तव में करना चाहिए, ऐसी लज्जा जो लम्बे समय तक हम में बने रहने और हमे अपंग बना देने का जोखिम उत्पन्न करती है।
हमें इस अपंग बना देने वाली लज्जा से लड़ने के लिए भविष्य-के-अनुग्रह और शान्ति की प्रतिज्ञाओं को थामना है जो हमें हमारे लज्जाजनक कार्यों की क्षमा प्राप्ति के द्वारा ही प्राप्त होती हैं।
- “परन्तु तू तो क्षमा करने वाला है, कि लोग तेरा भय मानें।” (भजन 130:4)
- “जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो। दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच-विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरे, और वह उस पर दया करेगा, हाँ हमारे परमेश्वर की ओर, क्योंकि वह पूरी रीति से क्षमा करेगा।” (यशायाह 55:6–7)
- “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।” (1 यूहन्ना 1:9)
- “सब नबी उसकी साक्षी देते हैं कि प्रत्येक जो उस पर विश्वास करता है, उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा पाता है।” (प्रेरितों के काम 10:43)
हम सभी को क्षमा की आवश्यकता है। और हमें कल भी उसकी आवश्यकता पड़ेगी। यीशु इस कारण मरा जिससे कि वह हमें आज और कल इस क्षमा को उपलब्ध करा सके। चाहे आज हो या कल हो वास्तविकता यह है कि: परमेश्वर की क्षमा हमें हमारे भविष्य के लिए स्वतन्त्र करती है। वह हमें अपंग बना देने वाली लज्जा से स्वतन्त्र करती है। क्षमा भविष्य-के-अनुग्रह से भरपूर है।
हम भविष्य-के-अनुग्रह के विश्वास में जीते हैं, जिसकी जड़ें परमेश्वर की क्षमा में पाई जाती हैं, तब ऐसी लज्जा जिसके हम योग्य हैं, उसके बने रहने वाले तथा अपंग बनाने वाले प्रभावों से स्वतन्त्र किये जाते हैं। यही क्षमा का वास्तविक अर्थ है।