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उपदेश हेतु खरी शिक्षा की आवश्यकता

हम में से प्रत्येक जन इस सत्य से सहमत होंगे कि हमें हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। ठीक वैसे ही, यह भी सत्य है कि हमारे आत्मिक जीवन और उन्नति के निमित्त हमें खरे उपदेश और शिक्षा की भी आवश्यकता है।

प्रेरित पौलुस, तीतुस को यह आज्ञा देता है कि वह क्रीत में लोगों को खरी शिक्षा के अनुसार उपदेश दे (तीतुस 2:1)। एक शिक्षक / उपदेशक / पास्टर का, कलीसिया के लोगों के निमित्त, खरी शिक्षा के अनुसार उपदेश देना एक आज्ञा है तथा एक उत्तरदायित्व भी है। तीतुस 1:9 और 2 तीमुथियुस 4:3 में हम खरी शिक्षा की आवश्यकता को देखते हैं। एक ओर खरी शिक्षा है जो धर्मोपदेश के अनुसार है और उसके विपरीत एक दूसरी शिक्षा है जो स्वार्थी अभिलाषा एवं कान की खुजलाहट के अनुसार है। इस लेख के द्वारा हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि उपदेश हेतु खरी शिक्षा क्यों आवश्यक है। 

खरी शिक्षा हमारे उपदेश हेतु एक मार्गदर्शक है 
याकूब अपनी पत्री में यह चेतावनी देते हुए लिखता है कि “तुम में से बहुत शिक्षक न बनें, यह जानते हुए कि हम शिक्षक और भी कठोरतम दण्ड के भागी होंगे” (याकूब 3:1)। एक उपदेशक / शिक्षक अपनी इच्छानुसार उपदेश नहीं दे सकता है। अपने उपदेश देने के कार्य और उत्तरदायित्व में वह आलसपन नहीं कर सकता और न ही वह जवाबदेही से भाग सकता है। कई बार यह देखा गया और पाया गया है कि उपदेशक / प्रचारक इस विषय को गम्भीरता से नहीं लेते हैं और अपने ही इच्छानुसार शिक्षा देने लगते हैं। जब शिक्षा से जुड़ा हुआ कोई मापदण्ड नहीं होता है तब ऐसा होना बहुत स्वाभाविक हो जाता है। खरी शिक्षा वह मापदण्ड है जो उपदेश हेतु एक मार्गदर्शक बन जाता है। यह मापदण्ड हमें गलत शिक्षा की ओर आकर्षित होने से रोकता है। मार्गदर्शक के रूप में, खरी शिक्षा हमें सावधान रहने हेतु प्रोत्साहित भी करती है जिससे कि हम अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न करें, जो लज्ज़ित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो (2 तीमुथियुस 2:15)। 

खरी शिक्षा आधारित उपदेश कलीसिया में उन्नति का कारण है 
ख्रीष्टीय जीवन में उन्नति को सांसारिक दृष्टिकोण के आधार पर देखा नहीं जाता है। इसके विपरीत, ख्रीष्टीय जीवन में आत्मिक उन्नति को प्राथमिकता दी जाती है। आत्मिक जीवन की उन्नति खरी शिक्षा आधारित उपदेश के द्वारा होती है। 

जब हम लोग रविवारीय साप्ताहिक आराधना के लिए एक मण्डली के रूप में इकट्ठे होते हैं, तो उसका उद्देश्य मनोरंजन या सामाजिक आवश्यकताओं को लेकर विचारों का आदान प्रदान नहीं होता है, परन्तु उसका उद्देश्य साथ मिलकर परमेश्वर के वचन को सुनना होता है। और परमेश्वर पवित्र आत्मा अपने वचन के द्वारा हमें शुद्ध करता है तथा हमें मसीह के जैसे बनने में हमारी सहायता करता है, यही आत्मिक उन्नति है (1 कुरिन्थियों 14:26)। यह आत्मिक उन्नति मुख्य रूप से खरी शिक्षा आधारित उपदेश के द्वारा हो सकता है। यदि कलीसिया में एक उपदेशक / शिक्षक / पास्टर खरी शिक्षा नहीं देता है तो फिर उसका उपदेश लोगों की आत्मिक उन्नति का कारण नहीं बन सकता है। बाइबल इस विषय पर बहुत स्पष्ट है कि हमारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो (1 कुरिन्थियों 14:12)। इस कारण कलीसिया में उपदेश मनोरंजन / लोकप्रियता आधारित नहीं वरन् खरी शिक्षा आधारित होनी चाहिए जिससे कि कलीसिया में लोगों की आत्मिक उन्नति हो सके। 

खरी शिक्षा झुण्ड की रखवाली के निमित्त उपयोगी है 
एक उपदेशक / पास्टर की भूमिका को बाइबल, चित्रात्मक रूप से, एक झुण्ड के रखवाले के समान प्रस्तुत करती है (1 पतरस 5:2)। यह रखवाला झुण्ड को त्रुटिपूर्ण, सांसारिक, अभिलाषापूर्ण शिक्षा से बचाता है। यह बचाव वह न केवल झूठे शिक्षकों और उनकी शिक्षाओं का खण्डन करने के द्वारा करता है (तीतुस 1:9 ब) परन्तु खरी शिक्षा आधारित उपदेश देने के द्वारा भी करता है (1 तीमुथियुस 4:6)। यरूशलेम की ओर यात्रा करने से पहले जब प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया, उसने उन्हें कलीसिया की रखवाली करने के लिए निर्देश दिया (प्रेरितों के काम 20:17,28)। प्रेरित पौलुस ने वहाँ लोगों के मध्य सुसमाचार का सन्देश दिया (पद 21), परमेश्वर के सम्पूर्ण अभिप्राय के विषय में बताया (पद 27)। अब वह कलीसिया के प्राचीनों से यह कह रहा था कि वह परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करे, क्योंकि उनके मध्य में से फाड़ने वाले भेड़िए आएँगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे और जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें करेंगे (पद 29-30)। अब इस झुण्ड / कलीसिया की रखवाली के लिए प्रेरित पौलुस उनके हाथों में तलवार और अन्य शस्त्र नहीं देता और न ही युद्ध कला में निपूर्ण होने का सुझाव देता है। परन्तु वह उन्हें परमेश्वर और उसके अनुग्रह के वचन के हाथ सौंपता है (पद 32)। यह “अनुग्रह के वचन” खरी शिक्षा है जो झुण्ड की रखवाली के निमित्त उपयोगी है। झूठी शिक्षा से झुण्ड की रखवाली के लिए जो शस्त्र है वह खरी शिक्षा आधारित उपदेश है।  

परमेश्वर हमारी सहायता करे कि हम जो परमेश्वर के वचन पर विश्वास करते हैं निरन्तर खरी शिक्षा में बने रहें, दूसरों को खरी शिक्षा में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहें। उस सत्य के वचन को हम थामे रहें और लोगों के मध्य खरी शिक्षा आधारित उपदेश दें। यह सत्य है कि आज के समय में टेढ़ी-मेढ़ी बातों के द्वारा, आकर्षक और लुभावने वाले तर्कों के माध्यम से भरमाने वाले शिक्षक उठ खड़े हुए हैं किन्तु परमेश्वर का वचन स्थिर है, अटल है, सामर्थी है, निष्कलंक है और पवित्र है। हम अपना आश्वासन उस सत्य के वचन पर बनाए रखें और उत्साहपूर्वक खरी शिक्षा का प्रचार करते रहें। 

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मोनीष मित्रा
मोनीष मित्रा

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

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