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 हम सब कुछ पर राज्य करेंगे

“जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया।” (प्रकाशितवाक्य 3:21)

जब यीशु लौदीकिया की कलीसिया से यह कहता है तो उसका अर्थ क्या होता है?

यीशु के साथ उसके सिंहासन पर बैठेंगे? सच में?

यह प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए एक प्रतिज्ञा है जो प्रत्येक भयंकर पीड़ा और प्रलोभन, पापपूर्ण आनन्द के पश्चात् भी विजय प्राप्त करता है, अर्थात्, जो अन्त तक विश्वास में आगे बढ़ता है (1 यूहन्ना 5:4)। इसलिए यदि आप यीशु में सच्चे विश्वासी हैं, तो आप परमेश्वर के पुत्र के सिंहासन पर विराजमान होंगे जो पिता परमेश्वर के सिंहासन पर विराजमान है।

मेरी समझ से “परमेश्वर का सिंहासन” विश्व पर शासन करने के न्यायोचित अधिकार को दर्शाता है। उसी पर यीशु बैठता है। पौलुस ने कहा कि “उसका राज्य करना अवश्य है जब तक वह अपने सब शत्रुओं को अपने पैरों तले न कर दे” (1 कुरिन्थियों 15:25)। इसलिए जब यीशु कहते हैं, “मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठने की अनुमति दूँगा,” तो वह हमसे सब कुछ पर राज्य करने में भागीदारी की प्रतिज्ञा करता है।

क्या इफिसियों 1:22-23 में पौलुस के मन में यही विचार है? “उसने सब कुछ उसके पैरों तले कर दिया और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया, जो उसकी देह है, और उसकी परिपूर्णता है जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है।” 

हम, कलीसिया, “उसकी परिपूर्णता हैं जो सब कुछ पूर्ण करता है।” इसका अर्थ क्या है? मैं इसका अर्थ यह समझता हूँ कि सारी पृथ्वी यहोवा की महिमा से भर जाएगी (गिनती 14:21)। और उस महिमा का एक आयाम यह है कि प्रत्येक स्थान में उसके शासन का पूर्ण और निर्विरोध विस्तार होना।

इसलिए, इफिसियों 1:23 का अर्थ होगा, यीशु हमारे द्वारा  पूरे विश्व में अपनी महिमा के शासन को भर देगा। उसके साथ शासन में भागीदार होते हुए हम उसके शासन की पूर्णता हैं। हम उसके स्थान पर, उसकी सामर्थ्य के द्वारा, उसके अधिकार की अधीनता में शासन करते हैं। इस अर्थ में, हम उसके साथ उसके सिंहासन पर बैठते हैं।    

हममें से कोई भी ऐसा अनुभव नहीं करता है जैसा कि हमें करना चाहिए। वह तो बहुत उत्तम है — अर्थात् बहुत अच्छा, बहुत अद्भुत। यही कारण है कि पौलुस परमेश्वर की सहायता के लिए प्रार्थना करता है कि “तुम्हारे मन की आँखें ज्योतिर्मय हों, जिस से तुम जान सको कि उसकी बुलाहट की आशा क्या है” (इफिसियों 1:18)।

अभी हम सर्वशक्तिमान की सहायता के बिना, उस अद्भुत बात का अनुभव नहीं कर सकते हैं जिसे बनने के लिए हमें ठहराया गया है। परन्तु यदि हमें इसे अनुभव करने की अनुमति दी जाती, जैसा कि वह वास्तव में है, तो इस संसार के प्रति हमारी सभी भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ परिवर्तित हो जाएँगी। नये नियम के विचित्र और क्रान्तिकारी आदेश उतने विचित्र प्रतीत नहीं होंगे जितने कि वे पहले प्रतीत होते थे।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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