यदि आप परमेश्वर से केवल अप्रतिबन्धित प्रेम (unconditional love) की आशा रखते हैं तो आपकी आशा महान् है, परन्तु यह बहुत छोटी है।
परमेश्वर से अप्रतिबन्धित प्रेम पाना उसके प्रेम का सबसे मधुरतम अनुभव नहीं है। मधुरतम अनभुव तो यह है जब वह कहता है “मैंने तुम्हें अपने पुत्र के इतने समान बनाया है कि मैं तुम्हें देखने के लिए और तुम्हारे साथ होने के लिए आनन्दित होता हूँ। तुम मेरे लिए सुख का कारण हो, क्योंकि तुम मेरी महिमा से अति प्रकाशमान हो।”
यह सबसे मधुरतम अनुभव इस बात पर निर्भर होता है कि हम उस प्रकार के लोग में परिवर्तित हों जिनकी भावनाएँ और चुनाव तथा कार्य परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं।
अप्रतिबन्धित प्रेम उस मानव परिवर्तन का स्रोत और आधार है जो प्रतिबन्धित प्रेम की मधुरता को सम्भव बनाता है। यदि परमेश्वर ने अप्रतिबन्धित रूप से हमसे प्रेम न किया होता, तो वह हमारे अनाकर्षक जीवनों में प्रवेश न करता, विश्वास में न लाता, ख्रीष्ट के साथ नहीं मिलाता, अपना आत्मा न देता और न ही हमें प्रगतिशील रूप में यीशु के जैसा बनाता।
किन्तु जब वह हमें अप्रतिबन्धित रूप से चुनता है और ख्रीष्ट को हमारे लिए मरने भेजता है तथा हमें पुनरुज्जीवित करता है, तो वह परिवर्तन की एक अबाध प्रक्रिया को गति देता है जो हमें महिमान्वित बनाती है। वह हमें अपनी प्रिय महिमा अर्थात् स्वयं उसकी महिमा से मेल खाने वाली महिमा प्रदान करता है।
हम इसको इफिसियों 5:25-27 में देखते हैं। “ख्रीष्ट ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आप को उसके लिए दे दिया [अप्रतिबन्धित प्रेम], कि उस को . . . पवित्र बनाए, और उसे एक ऐसी महिमायुक्त कलीसिया बनाकर प्रस्तुत करे” — वह स्थिति या प्रतिबन्ध जिसमें वह हर्षित होता है।
यह अवर्णनीय रूप से अद्भुत है कि जबकि अभी हम विश्वास न करने वाले पापी ही हैं तब ही परमेश्वर ने अप्रतिबन्धित रूप से अपना अनुग्रह हम पर किया। इसके अद्भुत होने का सर्वोपरि कारण यह है कि यह अप्रतिबन्धित प्रेम हमें उसकी महिमामय उपस्थिति के अनन्त आनन्द में ले आता है।
किन्तु इस आनन्द की परिकाष्ठा यह है कि हम न केवल उसकी महिमा को देखते हैं, परन्तु उसे प्रतिबिम्बित भी करते हैं। “जिससे कि हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम में महिमा पाए, और तुम उसमें” (2 थिस्लुनीकियों 1:12)।