तुरन्त सब द्वार खुल गए और सब की बेड़ियां खुल गईं (प्रेरितों के काम 16:26)
इस युग में, परमेश्वर अपने लोगों को कुछ हानि से बचाता है। सभी हानि से नहीं। यह जानकर बड़ी ही सान्त्वना मिलती है, अन्यथा हम अपनी हानि से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वह हमें भूल गया है या उसने हमें त्याग दिया है।
इसलिए इस साधारण अनुस्मारक के द्वारा स्वयं को प्रोत्साहित कीजिए कि प्रेरितों के काम 16:19-24 में पौलुस और सीलास का छुटकारा नहीं हुआ था, परन्तु पद 25-26 में उनका छुटकारा हो गया।
पहले, वे छुड़ाए नहीं गए थे:
- “वे पौलुस और सीलास को पकड़कर और घसीटकर चौक में ले गए।” (पद 19)
- “न्यायधीशों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले।” (पद 22)
- “उन्होंने बेंत से बहुत पिटवाकर उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया।” (पद 23)
- दारोगा ने “उनके पैर काठ में जकड़ दिए।” (पद 24)
परन्तु इसके पश्चात, छुटकारा:
अर्ध-रात्रि के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे तथा परमेश्वर की स्तुति गा रहे थे. . .तभी अचानक एक बड़ा भूकम्प आया जिस से बन्दीगृह की नींव हिल गई और तुरन्त सब द्वार खुल गए और सब की बेड़ियाँ खुल गईं। (पद 25-26)
परमेश्वर थोड़ा और पहले वहाँ हस्तक्षेप कर सकता था। परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। उसके पास ऐसा करने के अपने कारण हैं। वह पौलुस और सीलास से प्रेम करता है।
आपके लिए प्रश्न: यदि आप अपने जीवन की तुलना पौलुस के जीवन से करेंगे जिसमें निरन्तर पहले कष्टों का उठाया जाना और फिर छुटकारे का पाया जाना होता है, तो आप स्वयं को अभी किस स्थान पर पाएँगे? क्या आप कपड़े फाड़े जाने या पिटाई किए जाने वाले स्थान में हैं, या बेड़ियों से मुक्त खुले हुए द्वार के सामने वाले स्थान में हैं?
दोनों ही स्थितियों में परमेश्वर आपकी देखभाल करता है। उसने आपको न ही छोड़ा है और न ही त्यागा है (इब्रानियों 13:5)।
यदि आप बेड़ियों से जकड़ी हुई स्थिति में हैं, तो आप निराश न हों। स्तुति के गीत गाँए। मुक्ति निकट मार्ग पर है। केवल कुछ ही समय की बात है। भले ही यह मृत्यु के द्वारा ही क्यों न आए। “प्राण देने तक विश्वासयोग्य रह, तब मैं तुझे जीवन का मुकुट प्रदान करूँगा” (प्रकाशितवाक्य 2:10)।