ख्रीष्टीय सुखवाद (Christian Hedonism) के प्रति एक सामान्य आपत्ति है कि यह मनुष्य के हितों को परमेश्वर की महिमा के ऊपर रखता है — अर्थात् यह मेरे आनन्द को परमेश्वर के सम्मान के ऊपर रखता है। परन्तु ख्रीष्टीय सुखवाद निश्चित रूप से ऐसा नहीं करता है।
निस्सन्देह हम ख्रीष्टीय सुखवादी अपनी पूरी शक्ति से यत्न करते हैं कि हम अपने हित और अपनी प्रसन्नता की खोज करें। हम उस युवा जोनाथन एडवर्ड्स के संकल्प की पुष्टि करते हैं: “मैंने संकल्प लिया है: कि मैं अपनी क्षमता, या हर कल्पनीय प्रयास की सम्पूर्ण सामर्थ्य, बल, उत्साह, तीव्रता, और यहाँ तक पूरी शक्ति से, अपने लिए आने वाले संसार में यथा सम्भव उतनी प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करूँगा।
परन्तु हमने बाइबल से (और एडवर्ड्स से!) सीखा है कि परमेश्वर की रुचि है कि वह हम पर अपनी दया उण्डेलने के द्वारा अपनी महिमा की परिपूर्णता को बढ़ाए — अर्थात् हम पापियों के लिए, जिन्हें उसकी दया की अति आवश्यकता है।
इसलिए, भले ही हमें स्वयं के हित और आनन्द की खोज के लिए प्राणों की हानि उठानी पड़े, वह कभी भी परमेश्वर के हित और परमेश्वर के आनन्द और परमेश्वर की महिमा से ऊपर नहीं है, वरन् वह सदैव परमेश्वर में ही पाया जाता है। बाइबल में सबसे बहुमूल्य सत्यों में से एक यह है कि परमेश्वर का सबसे बड़ा हित इस बात में है कि पापियों को स्वयं में — अर्थात् उस में आनन्दित करने के द्वारा, वह अपने अनुग्रह के धन की महिमा करे।
जब हम अपने आप को छोटे बच्चों के समान नम्र करते हैं और स्वयं की आत्म-निर्भरता पर भरोसा नहीं रखते हैं, परन्तु अपने पिता की निकटता के आनन्द में हर्षित होते हैं, तो उसके अनुग्रह की महिमा बढ़ जाती है और हमारी आत्मा की लालसा पूरी हो जाती है। हमारा हित और उसकी महिमा एक हो जाती है।
जब यीशु मत्ती 6:6 में प्रतिज्ञा करता है कि, “तेरा पिता जो गुप्त में देखता है तुझे प्रतिफल देगा,” वह चाहता है कि हम इसी प्रतिफल की खोज में रहें। वह हमें उस आनन्द से प्रलोभित नहीं करता है जो हमारे पास नहीं होना चाहिए! परन्तु यह प्रतिफल — यह आनन्द — मानवीय प्रशंसा से फिरने और भीतरी कक्ष में जाकर परमेश्वर को खोजने के कारण उमड़ता है।
इसलिए, ख्रीष्टीय सुखवादी अपने आनन्द को परमेश्वर की महिमा से ऊपर नहीं रखते हैं। वे स्वयं परमेश्वर में अपना आनन्द डालते हैं और इस महिमान्वित सत्य को पाते हैं कि परमेश्वर हम में सर्वाधिक महिमान्वित तब होता है, जब हम उस में सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं।