और यह नहीं कि वह [ख्रीष्ट]अपने आप को बार-बार चढ़ाए – जैसे कि महायाजक प्रति वर्ष लहू लेकर पवित्र स्थान में प्रवेश तो करता है, परन्तु अपना लहू लेकर नहीं – अन्यथा जगत की उत्पत्ति के समय से उसे बार बार दुःख भोगना पड़ता, परन्तु अब युग के अन्त में वह एक ही बार प्रकट हुआ कि अपने ही बलिदान के द्वारा पाप को मिटा दे। (इब्रानियों 9:25-26)
इस बात को अगम्भीरतापूर्वक नहीं लिया जाना चाहिए कि स्वर्ग में पापियों का स्वागत होगा।
परमेश्वर पवित्र और शुद्ध और सिद्ध रीति से न्यायी और धर्मी है। फिर भी बाइबल की पूर्ण कथा यह है कि कैसे इतना महान् और पवित्र परमेश्वर आपके और हमारे जैसे अशुद्ध, अपवित्र लोगों को अपनी कृपा में आने दे सकता है। यह कैसे सम्भव है?
इब्रानियों 9:25 कहता है कि पाप के लिए ख्रीष्ट का बलिदान यहूदी याजकों के बलिदान के समान नहीं था। वे महापवित्र स्थान में वर्ष में एक बार पापों के प्रायश्चित् के लिए पशु के बलिदान के साथ प्रवेश करते थे। परन्तु ये पद कहते हैं कि ख्रीष्ट ने “अपने आपको बार-बार” [चढ़ाने के लिए] स्वर्ग में प्रवेश नहीं किया “…अन्यथा जगत की उत्पत्ति के समय से उसे बार-बार दुःख भोगना पड़ता” (इब्रानियों 9:26)।
यदि ख्रीष्ट ने याजकों की पद्धति का पालन किया होता, तो उसे प्रति वर्ष मरना पड़ता। और क्योंकि उन पापों को भी ढका जाना था जिनमें आदम और हव्वा के पाप भी सम्मिलित थे, तो उसे अपनी वार्षिक मृत्यु का आरम्भ जगत की उत्पत्ति से प्रारम्भ करना होता। परन्तु लेखक इसे अकल्पनीय मानता है।
यह अकल्पनीय क्यों है? क्योंकि यह परमेश्वर के पुत्र की मृत्यु को शक्तिहीन और अप्रभावशाली बना देता। यदि शताब्दियों से इसे प्रति वर्ष दोहराना पड़ता, तो विजय कहाँ होती? हम परमेश्वर के पुत्र के बलिदान के अनन्त मूल्य को कहाँ देखते? उसका मूल्य तो वार्षिक बलिदान और मृत्यु की लज्जा में ही समाप्त हो जाता।
क्रूस में लज्जा थी परन्तु वह जयवन्त लज्जा थी। “[यीशु ने] लज्जा की कुछ चिन्ता न करके क्रूस का दुःख सहा, और परमेश्वर के सिंहासन की दाहिनी और जा बैठा” (इब्रानियों 12:2)।
यह है परमेश्वर के प्रतिरूप, अर्थात् ख्रीष्ट का तेजोमय सुसमाचार (2 कुरिन्थियों 4:4)। मैं प्रार्थना करता हूँ कि भले ही पाप के कारण आप कितने ही गन्दे या अपवित्र हों, आप इस महिमा के प्रकाश को देखें और विश्वास करें।