यदि कुछ लोगों ने विश्वास नहीं भी किया तो क्या हुआ? क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को व्यर्थ ठहराएगा? ऐसा कदापि न हो! वरन् परमेश्वर ही सच्चा ठहरे, चाहे प्रत्येक व्यक्ति झूठा पाया जाए, जैसा कि लिखा है, “कि तू अपनी बातों में खरा, और अपने न्याय में सच्चा ठहरे।” (रोमियों 3:3-4)
सत्य के प्रति हमारा विचार परमेश्वर के प्रति हमारे विचार की एक अनिवार्य अभिव्यक्ति है। यदि परमेश्वर अस्तित्व में है, तो वह सभी बातों का मापक है, और वह सभी वस्तुओं के विषय में जो सोचता है, वही इस बात का मापक होगा कि हमें क्या सोचना चाहिए।
सत्य की चिन्ता न करना परमेश्वर के विषय में चिन्ता न करने के समान है। परमेश्वर से मनोभावपूर्वक प्रेम करना, सत्य से पूरी लगन से प्रेम करने के समान है। जीवन में परमेश्वर-केन्द्रित होने का अर्थ है सेवकाई में सत्य-चलित होना। जो सत्य नहीं है वह परमेश्वर से नहीं है।
इन चार स्थलों पर विचार करें जो परमेश्वर और सत्य के विषय में हैं :
1) परमेश्वर सत्य है
रोमियों 3:3-4 (परमेश्वर पिता): “यदि कुछ लोगों ने विश्वास नहीं भी किया तो क्या हुआ? क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को व्यर्थ ठहराएगा? ऐसा कदापि न हो! वरन् परमेश्वर ही सच्चा ठहरे, चाहे प्रत्येक व्यक्ति झूठा पाया जाए, जैसा कि लिखा है, “कि तू अपनी बातों में खरा, और अपने न्याय में सच्चा ठहरे।”
यूहन्ना 14:6 (परमेश्वर पुत्र): यीशु ने उससे से कहा, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।”
यूहन्ना 15:26 (परमेश्वर पवित्र आत्मा): “जब वह सहायक आएगा जिसे मैं पिता की ओर से तुम्हारे पास भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा, जो पिता से निकलता है, वह मेरी साक्षी देगा।”
2) सत्य से प्रेम न करना सर्वदा के लिए विनाशकारी है।
2 थिस्सलुनीकियों 2:10: दुष्ट नाश होंगे “क्योंकि उन्होंने सत्य से प्रेम नहीं किया जिस से उनका उद्धार होता है।”
3) ख्रीष्टीय जीवन सत्य के ज्ञान पर आधारित है।
1 कुरिन्थियों 6:15-16: “क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह ख्रीष्ट के अंग हैं? तो क्या मैं ख्रीष्ट के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊँ? कदापि नहीं। क्या तुम नहीं जानते कि जो कोई वेश्या से संयोग करता है, वह उसके साथ एक तन हो जाता है? क्योंकि लिखा है: “वे दोनों एक तन होंगे।”
4) ख्रीष्ट की देह प्रेम में सत्य के साथ निर्मित है
कुलुस्सियों 1:28: “जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को चेतावनी देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को ख्रीष्ट में सिद्ध करके उपस्थित करें।”
परमेश्वर हमें उसके लिए और सत्य के लिए मनोभावपूर्ण बनाए।